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पद्म | होय रहा है और नाना प्रकार के रत्नों की प्रभाकर ज्योति का मण्डल पड़ रहा है सो मानों इन्द्रधनुष पुराण
ही चढ़ा रहा है और नानाप्रकार के वर्णों की सैकड़ों ध्वजाफर हरे हैं और वह विमान कल्पवृक्ष समान | मनोहर है नानाप्रकार के रत्नों से निर्मापित नाना रूप को धरे मानो स्वर्ग लोकसे आया है, सो उस | विमान में पुत्रसहित अंजनी वसन्तमाला तथा राजा प्रतिसूर्य का परिवार सब बैठकर आकाश के मार्ग
चले,सोबालक कौतुककर मुलकता सन्तामाताकी गोद में से उछलकर पर्वत ऊपरजापड़ा माता हाहाकार | करनेलगी और सर्व लोक राजा प्रतिसूर्यके हाहाकार करते भए और राजा प्रतिसूर्य बालक के ढूंढने को
आकाश से पृथिवी पर आया, अंजनी अतिदीन भई विलाप करे है ऐसे विलाप करे है उस को सुन कर तिर्यञ्चोंका मन भी करुणा कर कोमल होयगया हायपुत्र यह क्या भया दैव कहिए पूर्वोपार्जित कर्मने क्या किया मुझे रत्न सम्पूर्ण निधान दिसायकर फिर हरलिया पतिके वियोगके दुःखसे व्याकुल जो मैसो मेरे जीवनका पालम्बन जो पालक भयाथो सोभी पूखोपार्जित कर्मने छिनायलिया सो माता तो यह विलाप करे है और पुत्र पत्थरपर पड़ा सो पत्थरके हजारों खंड होगए और महाशब्द भया प्रति सूर्य देखे तो बालक एक शिलाऊपर सुख से विराजे है अपने अंगूठे प्रापही चूसे है क्रीड़ा करे है और मुलके है अतिशोभाय मान सूधे पड़े हैं लहलहाट करे हैं कर चरण कमल जिनके सुन्दर है शरीर जिनका वे कामदेव पद के धारक उनको कौनकी उपमा दीजे मन्द मन्द जो पवन उससे लहलहाट करता जो रक्त कमलोंका बन उस समान है प्रभा जिनकी अपने तेजसे पहाड़के खंड खंड किए ऐसे बालकको दूरसे देखकर राजाप्रति सूर्य प्रति आश्चर्यको प्राप्तभया कैसाहे बालक निःपाप है शरीर जिसका धर्मका स्वरूप तेज का पुंज
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