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पद्म
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को वसंतमाला कहती भई यहकोई दयावान् देव है जिसने अष्टापद का रूपकर सिंहको भगाया और हमारी रक्षा करी और यह मनोहर राग इसी ने अपने आनन्द के अर्थ गाए हैं हे देवी हे शोभन हे शीलवंती तेरी दया सबही करें जें भव्य जीवहैं तिनके महाभयंकर बनमें देव मित्र होयहैं इस उपसर्ग के विनाश से निश्चय तेरा पति से मिलाप होगा और तेरे पुत्र अद्भुत पराक्रमी होयगा, मुनिके वचन अन्यथा न होंय, सोसुनि के ध्यान कर जो पवित्र गुफा उस में श्री मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमा पघराय दोनो सुगंध द्रव्योंसे पूजा करती भई दोनों के चित्तमें यह विचार कि प्रसूति सुखसे होय । वसंतमाला नानाभांति अंजनीके चित्तको प्रसन्न
और कहती भई कि हे देवी मानो यह वन और गिरि मुम्हारे पधारने से परम हर्षको प्राप्त भया है सो नीझरने के प्रवाहकरयह पर्वत मानों हंसेही है, और यह वनके वृक्ष फलोंके भार से नम्रीभूत लहलहाटकरे हैं कोमल हैं पल्लव जिनके बिखर रहे हैं फूल जिनके सो मानों हर्ष को प्राप्तभए हैं और जे मयूर सूवा मैना कोकिलादिक मिष्ट शब्दकर रहे हैं सो मानो बन पहाड़ से बचनालाप करे हैं पर्बत नानाप्रकार की जे धातु तिनकी है खान जहां और सघनवृच्चों के जे समूह सोई इस पर्वतरूप राजाके सुन्दर वस्त्र हैं और यहां नानाप्रकार के रत्न हैं सोई इस गिरिके आभूषण भए और इसपर्वत में भली २ गुफा हैं और यहां अनेक जातिके सुगन्धपुष्प हैं और इस पर्वत ऊपर बडेवडे सरोवर हैं जिनमें सुगन्ध कमल फूल रहे हैं। तेरा मुख महासुन्दर अनुपम सो चन्द्रमा की और कमल की उपमा को जीते है कल्याणरुपी चिंता हो धीवर इस वन में सर्वकल्याण होयगा देवसेवा करेंगे हे पुण्याधिकारी तेरा शरीरविश्याप है हर्षसे पची शब्द करे हैं सो मानों तेरी प्रशन्साही करे हैं यहवृच शीतल मन्दसुगन्ध मेरे पत्रों
के
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