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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन १६ | समोशरण सहित प्राय बिराजे तब भगवन् के आगमन का वृत्तांत वनपालने आनकर राजासे कहा कार और छहों ऋतुओं के फल फूल लाकर आगे घरे तब राजाने सिंहासनसे उठकर सात पैंड पर्वतके सम्मुख जाय भगवान्को अष्टांग नमस्कार किया ओर वनपालको अपने सर्व प्राभरण उतारकर पारितोषिक में देकर भगवान के दर्शनोंको चलने की तैयारी करता भया। श्रीवर्धमान भगवान के चरणकमल सुर नर और असुरों से नमस्कार करने याग्यहें गर्भ कल्याण में छप्पन कुमारिकाओं ने शोधा जो माता का उदर उसमें तीन ज्ञान संयुक्त अच्युत स्वर्गसे आय वि राजे हैं । और इंद्र के आदेशसे धनपति ने गर्भ में प्रावने से छह मासपहले से रतन वृष्ट करके जिन के पिता का घर पूरा है और जन्म कल्याणक में सुमेर पर्वतके मस्तक पर इंद्रादिक देवोंने क्षीर सागर के जल जिनका जन्माभिषेक किया है और घरा है महावीर नाम जिनका और बाल अवस्था में इंद्रने जो देवकुमार रखके उन सहित जिन्हों ने क्रीड़ा करी है और जिनके जन्म में माता पिताको तथा अन्य समस्त परिवार को और प्रजाको और तीनलोकके जीवों को परम आनन्द हुआ नारकियोंका भी त्रास एक महरत के वास्ते मिट गया जिनके प्रभाव से पिता के बहुत दिनों के विरोधी जो राजाथे वह स्व मेवही आय नमीभूत भये और हाथी घोड़े स्थ रत्नादिक अनेक प्रकार के भेट किये और छत्र चमर बाहनादिक तजदीनहो हाथजोड़ कर पांवों में पड़े, और नाना देशों की प्रजा आयकर निवास करती भई जिन भगवानका चित्त भोगों में रत न हुवा जैसे सरोवरमें कमल जलसे निर्लेप रहै तैसे भगवान | जगत्की माया से अलिप्त रहे वह भगवान् स्वयं बुद्ध बिजली के चमत्कारवत् जगत्की माया को | For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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