________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पभ
पुराण
॥१५
यम सो कठोर है यह राजा कोमल चित्त है और पश्चिम दिशाका दिग्पाल जो वरुणसो दुष्ट जलचरों का अधिपति है इसके दुष्टों का अधिकारही नहीं और उत्तर दिशा का अधिपति जो कुबेर वह धनका रक्षक है यह धनका त्यागी है और बौद्ध की समान क्षणिक मती नहीं चन्द्रमाकी न्याई कलंकी नहीं राजा श्रेणिक सर्वोत्कृष्ट है जिसके त्याग का अर्थी पार न पावें जिसकी बुद्धि का पार पण्डित न पावते भए शूरवीर जिसके साहस का पार न पावते भए जिसकी कीर्ति दशों दिशामें विस्तरीहै जिसकेगणन | की संख्या नहीं सम्पदा का क्षय नहीं सेनाबहुत बड़े बड़े सामन्त सेवा करे हैं हाथी घोडे स्थ पयादे| सबही राजका ठाठ सबसे अधिक है और पृथिवी विषे प्राणीन का चित्त जिस से ति अनुरागी होता भया जिसके प्रताप का शत्रु पार न पावते भये सर्व कला विषे प्रवीण है इसलिये हम सारखे परुषवाके गुण कैसे गासकें जिसके क्षायक सम्यक्त की महिमा इन्द्र अपनी सभा विषे सदाही. करे है वह राजा मनिराजके समूह में वेतकी लता के समान नम्रीभूत है और उद्धत वैरी को बज्र दण्ड सेवश करनेवाला है जिसने अपनी भुजों से पृथिवी की रक्षा करी है कोट खाई तो नगरकी शोभामात्रहै जिन चैत्या खयों का कराने वाला जिन पूजा का करानेवाला जिसके चेलना नामा रानी महा पतिव्रता शीलवंती गुणवन्ती रूपवन्ती कुलवन्ती शुद्ध सम्यग्दशन की धरनेवाली श्रावक के व्रत पालनेवाली सर्व कलामें निपुण उसका वर्णन कहां लग करें ऐसा उपमा कर रहित राजा श्रेणिक गुणों का समूह राज गृह नगर में राज करे है।
एक समय सजगृह नगर के समीप विपुलाचल पर्वत के ऊपर भगवान महावीर अंतिम तीर्थकर |
For Private and Personal Use Only