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१२१८॥
पण पावता भया । और आपापा छिपाय मित्र के झरोखे में जाय बैठा और देखे कि यह क्या करे जो
मेरी स्त्री इस की आज्ञा प्रमाण न करे, तो मैं स्त्री का निग्रह करूं और जो इस की आज्ञा प्रमाण करे तो। सहस्रग्राम दूं । बनमाला रात्रि के समय प्रभव के समीप जाय बैठी तब प्रभव पूछता भया हे भदे तू कौन है तब इस ने विवाह पर्यन्त सर्व वृतान्त कहा सुन कर प्रभव प्रभारहित हो गया चित्तविष अतिउदास झ्या विचारे है हाय हाय में यह क्या अशुभ भावनाकरी मित्र की स्त्री माता समान कोन वांछ है मेरी बुद्धि भ्रष्ट भई इस पाप से में कब छुढे बने तो अपना सिर काट डार्क कलंक युक्त जीने कर क्या ऐसा विचार मस्तक काटने के अर्थ म्यान से खडग काढ़ा खडग की कान्ति कर दशों दिशा विषे प्रकाश हो गया तब सलवार को कराठ के समीप लाया और सुमित्र झरोखे में बैठा था सो कूद कर आप हाथ पकड़ लिया मरते को बचाय लीया छाती से लगाय कर कहनेलगा हे मितं! आत्मघात का दोषत नजाने है जे अपने शरीर का प्रविधि से निपात करे हैं वे शुद्र मर कर नरक में जाय पहें हैं अनेक भव अल्प
आयु के घारक होय हैं यह प्रात्मघात निगोद का कारण है । इस भान्ति कहकर मिल के हाथसे खड्ग छीन लीना और मनोहर बचनकर बहुत सन्तोषा और कहनेलगा कि हे मित् अव आपसमें परस्पर परममित्रता है सो यह मित्रता परभव में रहे है कि न रहे । यह संसार प्रसार है यह जीव अपने कर्म के उदय कर भिन्न भिन्न गति को प्राप्त होय हैं. इस संसार में कौन किसी का मित्र और कौन किसी का शत्रु है सदा एक देशा न रहे है, ग्रह कहकर दूसरे दिन राजासुमित्र महामुनि भए, पर्याय पूर्णकर दूजे स्वर्गईशान इन्द्र भए वहां से चर कर मथुरापुरी में राजा हरिबाहन जिस केराणी माधवी तिन के मधुनामा पुत्र मए
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