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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केकसी माता का पुत्र इसके रूपका गुण कौन वणन करसकै इसका दशक लानां को परम उत्सव का कारणहै वहस्त्री पुण्यवती धन्यहै जिसके गर्भसे यह उत्पन्नहुवा और वह पिता धन्यहै जिससे इसमे ॥२१॥ जन्म पाया और वे बन्धु लोक धन्य हैं जिनके कुलमें यह प्रगटा और जे सी इनकी राणी भई तिनके भाग्य कौन कहे इस भांति स्त्री झरोखावों में बेटी बात करे है और रावणकी असवारी चली जायहै जब रावण पाय निकसे तब एक महूर्त गांवकी रानी चित्रामकीसी होय रहें उसके रूप सौभाग्यकर हरागया चित्त जिनका स्त्रियोंको और पुरुषोंको रावणकी कथाके सिवाय और कथा न रही, देशों में तथा नगर ग्राम तथा गांव के बाड़े तिनमें जे प्रधान पुरुष हैं वे नाना प्रकास्की भेठ लेकर आय मिले और हाथ जोड़ नमस्कार कर विनती करते भये है देव महा विभवके पात्र तुम तुम्हारे घरमें सकल वस्तु विद्यमान हैं हे राजावों के राजा नन्दनादि बनमें जे मनोज्ञ वस्तु पाइये हैं वेभी सकस वस्तु चितवन मात्रसेही तुमको सुलभ हे असी अपूर्व वस्तु क्या हो जो तुम्हारी भेंट करें तथापि यह न्याय है किरीते हाओं से राजावोंसे न मिलिये इसलिये कछु हम अपनी माफ़िक भेट करे हैं जैसे भगवान जिनेन्द्र देवकी देव सुवर्णके कमलोंकर पूजा करे हे तिनकोच्या मनुष्य आप योग्य सामग्री कर न पूजे हैं इस भांति नाना प्रकारके देशोंके सामन्त बड़ी ऋद्धिके धारी रावणको पूजतेभये रावण तिनका मिष्ठ वचन सुनकर बहुत सन्मान करताभका रावण पृथिवीको बहुत सुखी देख प्रसन्न भया जैसे कोई अपनी स्त्रीको नाना प्रकार के रत्न आभषण कर मण्डित देख सुखीहोय जहां रावण मार्गके वश जाय निकसे उस देशमें विना बाहे धान | स्वमेव उत्पन्न भए पृथिवी अप्ति शोभायमान भई प्रजाके लोक परम प्रानन्दको धरते संते अनुरागरूपी For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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