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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजाओंकी सुन्दर पुत्री थी ते रावणने परणी जिस नगरके समीप राषण जाय निकसे उस नगरकेनर नारी देखकर आश्चर्यको प्राप्त हो स्त्री सकल काम छोड़ देखनेको दौड़ी केयक झरोखोंमें बैठी ऊपर से असीस देय फूल डारें कैसा है रावण मेघसमान श्यामसुंदर कंदूरी समान लाल, अधर जिसके और मुकट विवे नानाप्रकारकी जे मणि उनकर शोभहै सास जिसका मुक्ताफलोंकी ज्योति सोई भया जल उसकर पखाला है चन्द्रमा समान बदन जिसका इंद्रनील मणिसमान श्याम सपन जे केश और सहस्र पत्र कमल समान नेत्र तत्काल बैंचा नमी भूत हुआ जो धनुष उसके समान वक्र स्याम चिकने भौंह युगल जिसकर शोभित शंखसमान ग्रीवा गरदन] जिसकी और वृषभसमानकंध जिसके पुष्ट विस्तीर्णवक्ष स्थल जाके दिग्मजकी मुंड समान भुजा जिसके केहरी समान कटि जिसके और कदलीके समान सुंदर जंघाजिसकी कमल समान चरण सम चतुर संस्थानको धरै महा मनोहर शरीर जिसका न अधिक लंबा न अधिक छोटा न करा न स्थूल श्री वत्स लक्षणको श्रादि देय तीस लक्षणोंकर युक्त और अनेकप्रकार रत्नोंकी किरणोंकर देदीप्यमानहै मुकट जिसका और नानाप्रकारकी मणियोंकर मंडित मनोहर, कुंडल जिसके बाजूबंदकी दीप्तिकर देदीप्यमान हैं भुजा जिसकी और मोलियों के हारसे शोभे हैं उर जिस का अर्ध चक्रवर्तीकी विभूतिका भोगनहारा । उसे देख प्रजाके लोक बहुत प्रसन्न भए परस्पर बात करे हैं कि यह दशमुख मक्षा बलवान जीता है वैश्रवण जिसने और जीता है रामामय जिसने कैलाश के उठाने को उद्यमी हुग और प्राप्त किया है राजा सहस्ररश्मि को वैराग्य जिसने मरुत के यज्ञ का विध्वन्स करनहार महा शूरवीर साहसका भारी हमारे मुकृतके उदयकर इस दिशाको श्राया यह For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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