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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पुच uret www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से तेरा सिंहासन डिगा अबभी तुझे सांच कहना योग्य है तब मोहके मदकर उन्मत्त भया यहही कहता या जो पर्वत कहे सो सत्य है तब महा षापके भारकर हिंसामार्ग के अवरतनसे तत्काल सिंहासन समेत | बरतीपर में मढ़गया राजा मरकर सातवें नरक गया कसा है नरक अत्यन्त भयानक है वेदना जहां त राजा बसुको मूवादेख सभाके लोग वसू और पर्वतको विकार धिकार कहते भये और महा कलकलाट शब्द भया दया धर्म के उपदेश सेज़ार की बहुत प्रशंसामई और सर्व कहते भये (यतोधर्मस्तत्तोभयः) पापी पर्वत हिंसा के उपदेश से धिक्कार धिक्कार दण्डको प्राप्तभया पापी पर्बत देशान्तरों में भ्रमण करता संताहिंसामई शास्त्र की प्रकृति करताभया आप पढ़े भौरोंको पढ़ाने जैसे पतंग दीपकमें पड़े तैसे कईएक बहिरमुख जीव कुमार्ग में पड़े अभवका भक्षण और न करनेयोग्य कामकरना ऐसा लोकनको उपदेशदिया और कहता भया कि यज्ञही ये पशु बनाये हैं यज्ञ स्वर्ग का कारण है इसलिये जो यज्ञमें हिंसा है सो हिंसा नहीं और सौत्रामणि नाम यज्ञ के विधान कर सुरापान (शरावपीने) का भीदूषणनहीं औरगौ शब्द नामयज्ञ में अगम्यागम्य (परस्त्री सेवन करे हैं जैसा पवंतने लोकों को हिंसादि मार्गका उपदेशदीया सुरमायाकर जीव स्वर्गजाते दिखाये एक क्रूरजीव कुकर्ममें प्रवर्त कुगति के अधिकारी भये हे श्रेणिक यह हिंसायज्ञ कीउत्पति काकारण कहा अब रावणको वृतांत सुनो। रावण राजपुरगए जहां राजा मरुत हिंसा कर्म में प्रवीण यज्ञ शाला विषे तिष्ठे था संवर्तनामा ब्राह्मण यज्ञ करावे था वहांपुत्र दारादि सहित अनेक बिप्र धनके अर्थी आये थे और अनेक पशु होम निमित्त लाये थे उससमय अष्टम नारद पदवीधर बड़े पुरुष आकाश मार्ग आय निकसे बहुत लोकन का समूह देख आश्चर्य पायचितमेंचितवते मए कि यहनगर किसका है औरयहदर सेना किसकीपड़ी है For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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