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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पद्म | महात्मा नमस्कारहो तुमको । तीन लोककर करी है पूजा जिनकी नष्ट किया है मोहका बेग पुराण। जिन्होंने बचनसे अगोचर गुणों के समूहके धारनेहारे महा ऐश्वर्यकर मंडित मोक्ष मार्ग के उपदेशक सुखकी उत्कृष्टतामें पूर्ण समस्त कुमार्गसे दूर जीवनको भक्ति और मुक्तिके कारण महाकल्याणके मूल सर्व कर्म के साक्षी ध्यानकर भस्म किएहें पाप जिन्होंने जन्ममरणके दूर करनेहारे समस्तके गुरु श्राप के कोई गुरु नहीं आप किसीको नवे नहीं और सबकर नमस्कार करने योग्य आदि अन्त रहित समस्त परमार्थके जाननेहारे पापको केवली बिना और न जान सके सर्व रागादिक उपाधिसे शून्य सर्व के उपदेशक द्रब्यार्थके नयसे सव नित्यहै और परमार्थक नयसे सब अनित्यहें ऐसा कथन कग्नेहारे किसी एक नयसे द्रव्य गुणका भेद किसी एक नयसे द्रब्य गुणका अभेद ऐसा अनेकांत दिखावनेहारे जिने श्वर सर्व रूप एकरूप चिद्रूप अरूप जीवनको मुक्तिके देनेहारे ऐसे जो तुम तिनको हमारा बारम्बार नमस्कार हो । श्रीऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन सुमति पद्मप्रभ सुपार्श्व चंद्रप्रभ पुष्पदंत शीतल श्रयांस वासुपूज्य के ताई बारम्बार नमस्कार हो पाया है आत्म प्रकाश जिन्हों ने बिमल अनंत । धर्म शांतिके ताई नमस्कार हो निरंतर मुखोंके मूल सबको शांतिके करता कुन्थ जिनेन्द्रके ताई नमस्कार हो अरनाथके ताई नमस्कार हो मल्लि महेश्वरके ताई नमस्कार हो मुनि मुव्रतनाथके ताई जो महाव्रतोंके देनेहारे और अब जो हॉवेगे नाम नेम पार्श्व वर्द्धमान तिनके ताई नमस्कारहो और जो पद्म नाभादिक अनागत होवेंगे तिनको नमस्कार और जे निर्माणादिक अतीत जिन भए तिनको नमस्कार || हो सदा सर्वदा साधुओंको नमस्कार और सर्व सिद्धोंको निरंतर नमस्कार । कैसे, सिद्ध केवल ज्ञानरूप || For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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