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पना दिशामें यम विद्याघरका बनायाहुवा नरक देखाजहां एकऊडा खाडाखोद राखाहैऔर नरककी नकल बनाय
राखीहे अनेक नरोंके समूह नरकमें राखेहैं तब रावणने उस नरकके रखवारे जे यमके किंकरथे उनको ॥१६४॥
कूटकर काढ़ दिया और सर्व प्राणी मूर्यरज रक्षरज श्रादि दुख सागरसे निकासे रावण दीननके बंधु दुष्टाको दंड देनहारे हैं वह सर्व नरक स्थानही दूर किया यह वृतान्त परचक्रके प्रावनेका मुन यम बडे आडंवरसे सर्व सेना सहित युद्ध करनेको श्राया मानो समुद्रही क्षोभको प्राप्त भया पर्वत सारिखे अनेक गज मदधारा झरते भयानक शब्द करते अनेक श्राभूषण युक्त उनपर महा योधा चढ़े और तुरंग पवन सारिखे चंचल जिनकी पूंछ चमर समान हालती अनेक प्राभूषण पहिरे उनकी पीठ पर महा वाहू मुभट चढ़े और सूर्य के रथ समान अनेक ध्वजाओं की पंक्ति से शोभायमान जिन में बडे बडे सामन्त वगतर पहेंर शस्त्रों के समूह धोर बैठे इत्यादि महा सेना सहित यम आया तव विभी पण ने यमकी सर्व सेना अपने वाणों से हटाई विभीषण विषे प्रवीण रथ पर आरूढ़ हैं विभीषणके बाखों से यम किंकर पुकारते हुए भागे यम किंकरों के भागने और नारकियों के छुडाने से महा कूर होकर विभीषण रथ पर चढ़ धनुष को धारे आया ऊंची हे ध्वजा जिस की काले सर्प समान कुटिल केश जिन के भूकुटी चढ़ाए लाल हे नेत्र जिस के जगत रूप इंधन के भस्म करण को अग्नि समान आप तुल्य जो बड़े बड़े सामन्त उन कर मंडित युद्ध करणे को अपने तेज से
आकाश में उद्योत करता हुअा अाया तब रावण यमको देख विभीषण को निवार आप रण संग्राम | में उद्यमी भए यम के प्रताप से सर्व राक्षस सेना भयभीत होय रावण के पीछे आय गए यम
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