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पुराव
हैं जैसे जिस मार्ग विषे मस्तहाथी चालें तिस मार्ग विषे मृग भी गमन करे हैं और जैसे युद्ध विष महा सुभट भागे होय कर शस्त्रपात करे हैं तिन के पीछे और भी पुरुष रण विषे पायहें और जैस बज्रसूची के मुख कर भेदी जो माण उस विषे सूत भी प्रवेश करे है तैसे ज्ञानीन की पंक्तिकर भाषा हुआ चला आया जो राम सम्बन्धी चरित्र ताके कहने को भक्ति कर प्रेरी जो हमारी अल्प बुद्धि सो भी उद्यमवती भई है। बड़े पुरुष के चिन्तवन कर उपजा जो पुण्य ताके प्रसाद कर हमारी शक्ति प्रकट भई है । महा पुरुषन के यश कीत्तन से बुद्धि की वृद्धि होय है और यश अत्यंत निर्मल होय है और पाप दूर जाय है। यह प्राणीनका शरीर अनेक रोगों कर भरा है इसकी स्थिति अल्प काल है और सत्पुरुषन की कथा कर उपजाया जो यश सो जब तक चांदमूर्य्य हैं तब तक रहे हैं इस लिये जो आत्मवेदी पुरुष हैं वे सर्व यत्नकर महापुरुषनके यश कीर्तन से अपना यश स्थित करे हैं जिसने सज्जनो को आनन्द की देन हारी जो सत्पुरुषन की रमणीक कथा उसका प्रारम्भ किया उसने दोनों लोकका फल लिया जो कान सत्पुरुषन की कथा श्रवण विषे प्रबृतेहैं वेही कान उसम हैं और जे कुकथा के सुनन हारे कान हैं वे कान नाहीं तथा आकार घरे हैं और जे मस्तक स पन की चेष्टा के वर्णन विषे घूमे हैं तेही मस्तक धन्य हैं और जे शेष मस्तक हैं वे थोथे नारियल समान जानने । सत्पुरुषन के यश कीर्तन विषे प्रवृते जे होंठ तेही श्रेष्ठ हैं और जे शेष होंठ हैं ते जोक की पीठ समान विफल जानने । जे पुरुष सत्पुरुषन की कथा के प्रसंग विष अनुराग को प्राप्त भये उनही का जन्म सफल है । और मुख वेही हैं जो मुख्य पुरुषन की कथा विष रत भया। शेष
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