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पुराव
के मूल अनन्त सुख के भण्डार अठारहवें श्रीअरनाथ स्वामी कर्मरज रहितकरो । संसारके तारक मोह मल्ल | के जीतन हारे वाह्याभ्यन्तर मल रहित ऐसे उन्नीसवें श्रीमल्लिनाथ स्वामी ते अनन्त वीर्यकी प्राप्ति करो
और भले बतों के उपदेशक समस्त दोषों के विदारक बीसवें श्रीमुनिसुव्रत नाथ जिनके तीर्थ विषय श्रीरामचन्द्र का शुभचरित्र प्रगट भया ते हमारे अव्रत मेट महाव्रत की प्राप्ति करो। और नमी भूत भये हैं सुर नर असुरों के इन्द्र जिनको ऐसे इक्कीसवें श्रीनमिनाथ प्रभु ते हम को निर्वाण की प्राप्ति करो।
और समस्त अशुभकर्म तेई भये अरिष्ट तिनके काटिबेको चक्रकी धारा समान वाईसवें श्रीअरिष्ट नेमि भगवान् हरिवंश के तिलक श्रीनेमिनाथ स्वामी ते हमको यम नियमादि अष्टांग योग की सिद्ध करो और तेईसवें श्री पार्श्वनाथ देवाधिदेव इन्द्र नागेन्द्र चन्द्र सूर्यादिक कर पूजित हमारे भव सन्ताप हो । और चौबीसवें श्री महावीर स्वामी जो चतुर्थकाल के अन्त में भये हैं । ते हमारे महा मंगल करो। और मी जो गणधरादिक महामुनि तिनको मन, वच, काय कर बारम्बार नमस्कार कर श्री रामचन्द्र के चरित्र का व्याख्यान करूं हूं। कैसे हैं श्रीराम लक्ष्मीकर आलिगत है हृदय जिन का और प्रफुल्लितह मुख रूपी कमल जिनका महापुण्याधिकारी हैं महाबुद्धिमान हैं गुणन मंदिर हैं उदार है चरित्र जिनका, जिनका चरित्र केवलज्ञान के ही गम्य है ऐसे जो श्री रामचन्द्र उनका चरित्र श्री गणधर देवही किंचित् मात्र करनेको समर्थ हैं यह बड़ा आश्चर्य है कि जो हम सारिखे
अल्प बुद्धि पुरुष भी उनके चरित्र को कहें हैं यद्यपि हम सारिखे इस चरित्रके कहनेको समर्थ नहीं | तथापि परंपरा से महामुनि जिस प्रकार कहते आए हैं उनके कहे अनुसार कुछयक संक्षपता कर कहे
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