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पुराब
॥२१॥
| लोकपाल जाने और विद्याघरों को देव जाने इस भांति गर्बको प्राप्त भया कि मेर से अधिक पृथिवीपर और कोई नहीं मेंही सर्बकी रक्षा करूं यह दोनों श्रेणी का अधिपति होय ऐसा गर्वा कि मेंही इंद्र हूं।
कौतुकमङ्गल नगरका राजा ब्योमविंदु पृथिवीपर प्रसिद्ध उसके राणी मन्दवती उसके दो पुत्री भई बड़ी कौशिकी छोटी केकसी कौशिकी राजा विश्वको परणाई जो यज्ञपुर नगरके धनीथे उनके वैश्रवण पुत्र भया अति शुभ लक्षण का धारणहारा कमल सोरिषनेत्र उसको इन्द्रने बुलाकर बहुत सन्मान किया और लंका के थाने राखा और कहा मेर आगे चार लोकपाल हैं तैसे तू पांचवां महा बलवान है तब वैश्रवण ने विनती करी कि प्रभो जो आज्ञा करो सोही में करूं ऐसा कह इन्द्रको प्रणाम कर लंका को चला सो इन्द्रकी प्राज्ञा प्रमाण लंका के थाने रहै जाको राक्षसों की शंका नहीं जिसकी आज्ञा विद्याघरों के समूह अपने सिरपर धेरै हैं ॥
पाताल लंका में सुमाली के रत्नश्रवा नामा पुत्र भया महा शूर बीर दातार जगत् का प्यारा उदारवित्त मित्रों के उपकार निमित्त है जीवन जिसका और सेवकों के उपकार निमित्त है प्रभुत्व जिसका पण्डितों के उपकार निमित्त है प्रवीणपणा जिसका भाइयोंके उपकार निमित्तहै लक्ष्मीका पालन जिसके दरिद्रियों के उपकार निमित्त है ऐश्वर्य जिसका साधुओंकी सेवा निमित्त है शरीर जिसका जीवन के कल्याण निमित्तहै बचन जिसका सुकृतके स्मरण निमित्तहै मन जिसका धर्मके अर्थ है आयु जिसका शूरवीरता का मूलहै स्वभाव जिसका सो पिता समान सब जीवोंका दयालु जिसके परस्री माता समान पर द्रव्य तृण समान पराया शरीर अपने शरीर समाम महा गुणवान जो गुणवंतोंकी गिनती करें तहां
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