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पद्म
1(०६॥
डूबे है जैसे कोई शिला को कंठ में बांध भुजावों कर नदी को नहीं तिर सके तैसे रागादिक भार कर" पुतण | चतुति रूपं नदी न तिरी जाय, जे ज्ञान वैराग्य शील संतोष के धारक हैं वेई संसार सागर को तिरे है
जे श्रीगुरु के वचन कर आत्मानुभव के मार्ग लगे वेई भव भ्रमण से छूटें और उपाय नहीं काहू काभी लेजाया कोई लोकशिखर न जाय एक बीतराग भाव ही से जाय इसभांति श्रीराम भगवान सीता के जीव को कहते भए, सोयह वार्ता गौतमस्वामीने श्रेणिकसे कही फिर कहतेभए हेनृप सीताके जीव प्रत्येक ने जो केवलीसे पूछी औरउसन कहासो तू सुन, प्रतेंद्र ने पूछी हेनाथ दशरथादिक कहांगए और लववेकश कहां जावेंगे तब भगवान् ने कही दशरथ कौशल्या सुमित्रा केकई सुप्रभा और जनक और जनक का भाई कनक यह सब तपके प्रभाव कर तेरहमें दवलोक गए हैं यह सब ही समान ऋद्धि के धारी येक हैं
और लवअंकुश महाभाग्य कर्म रूप रजसे रहित होय बिमल पद को इसही जन्म से पावेंगे, इसमांति केवली की ध्वनि सुन भामंडल की गति पूछी, हे प्रभो भामंडल कहां गया, तब श्राप कहते भए हे प्रत्येन्द्र तेग: भाई राणी सुन्दरमालिनी सहित मुनिदान के प्रभाव कर देवकुरू भोगभूमि में तीन पल्य की आयु के भक्ता भोगभूमिया भए तिन के दान की वार्ता सुन अयोध्या में एक बहु कोट धनकाधनी सब कुलपति उसके मकरा नामात्री जिसके पुत्र राजापों के तुल्य पराक्रमी सो कुलपति | नेमुनी सीता को बनमें निकासी तब उसने विचारीवह महायशावती शीलवती सुकुमार अंग निर्जनन
में कैसे अकेली रहेगी धिक्कार है संसारकी चेष्टा को, यह विचार दयालुचित्त होय युतिभहारक के समीप || मुनि भया और उसके दोय पुत्र एक अशोकर्जा तिलक यह दोनों मुनिभए सो युतिभट्टारकतो समाधि |
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