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पद्य चुराण
मदरा के पीवनहारे पापियों को प्यावें हैं और मास भक्षियोंको तिनही के मांस काट काट उनके मुख | में देवे हैं और लोह के तप्त गोले सिण्डासी से मुख फाड़ फाड़ जोरावरी से मुख में देवें हैं और पर दारा सङ्गम करनहारे पापियों को ताती लोहे की पुतलियों से चिपटावे हैं जहां मायामई सिंह, ब्याधू, स्याल इत्यादि अनेक प्रकार बाधा करें हैं और जहाँ मायामयी दुष्ट पक्षी तीक्षण चोंच से चूटें हैं नारकी सागरों की आयु पर्यंत नाना प्रकार के दुःख त्रास मार भोग हैं मारते मर नाही आयु पूर्ण: करही मरें हैं परस्पर अनेक बाधा करें हैं और जहां मायामयी मक्षिका और मायामई कृमि सूई समान तीक्ष्ण मुख से हैं यह सर्व मायामयी जानने और पशु पक्षी तथा विकल तहां नाहीं नारकी जीव ही हैं तथा पंच प्रकारके स्थावर सर्वत्रही हैं नरक में जो दुःख जीव भोगे हैं उसके कहिनेको कौन समर्थ है तुम दोऊ कुगति में बहुत भ्रमेहो ऐसा मुनि ने कहा तब यह दोऊ अपना पूर्व भव पूछते भये संयमी मुनि कहे हैं कि तुम मन लगाकर सुनो यह दुःखदाई संसार इसमें तुम मोह से उन्मत्त होकर परस्पर दोष धरते आपस में मरण मारण करते अनेक योनि में प्राप्त भए तिन में एकतो कोशी नामा देश पोरधी भया दूजा श्रावस्ती नामा नगरी में राजाका सूर्यदत्त नामा मन्त्री भया सो ग्रह त्यागकर मुनि भया, महा तपकर युक्त अति रूपवान पृथिवी में विहार करै एक दिन काशी के बनमें जोव जंतु रहित पवित्र स्थानक में मुनि विराजे थे और श्रावक श्राविका अनेक दर्शनको श्रावते थे सो वह पापी पारधी मुनिको देख तीक्षण बचनरूप शस्त्र से मुनिको बींधता भया यह विचारकर कि यह निर्लज्ज मार्ग भष्ट स्नान रहित मलीन मुझको शिकार में जानेको अमंगलरूप भयाहै यह वचन पारधीनेकहे तब मुनिको ।
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