________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म अहमिन्द्र इन्द्रलोकपाल अादि देव अायु के क्षय भए स्वर्ग से चये हैं जिन की सागरों की प्राय और पुराण | १०४०. किसी के मारे न मरें वे भी काल पाय मरें मनुष्यों की कहाबात यह तो गर्भके खेदकर पीडित और रोगों
कर पूर्ण डाभकी अणीके ऊपर जोप्रोसकीवदायपड़े उससमान पड़ने को सन्मुख हैं महामलिन हाडों केपीजरे ऐसे शरीरके रहिबेकी कहां आशा आप यह प्राणी अपने सुजनों का सोच करे सोश्रापक्या अजर अमर है श्राप ही काल की दाढ में कैा उसका सोच क्यों न करे जो इनहीं की मृत्यु बाई होय और और अमर हे ता रुदन करना जब सबकी यही दशा है तो रुदन काहे का, जते देहधारी हैं तेतेसब काल के अाधीन हे सिद्ध भगवान के देह नहीं इसलिये मरण नहीं यह देह जिसदिनउपजाउसही दिनसे कालइसके सेयवे के उद्यममें है यह सब संसारी जीवों की रीति है इसलिये सन्तोष अंगीकार की इष्टके वियोग से शोक करे सो बृथा है शोक कर मरे तौभी वह वस्तुपीछे नावे इसलिये शोक क्यों करिये देखो काल तो वज्रदंड लीये सिर पर खड़ा है और संसारी जीव निर्भय भए तिष्ठे हैं जैस सिंह तो सिर पर खड़ा है और हिरणहरा तृण चरें है त्रैलोक्य नाथ परमेष्ठी और सिद्ध परमेश्वर तिन सिवाय कोई तीन लोक में मृत्युसे बचा सुना नहीं वेही अमर हैं और सब जन्म मरण करे हैं यह संसार विंध्याचल के वन समान काल रूप दावानल समान उन्ले है सो तुम क्या न देखो हो यह जीव संसार बन में भ्रमण कर अति कष्ट से मनुष्य देह पावे है सो हा है काम भोग के अभिलाषी होय माते हाथी की न्याई बंधन में पड़े हैं नरक निगोद के दुःख भोगवे हैं कभोयक व्यवहार धर्म कर स्वर्ग में देव भी होय हैं आयु के अंत वहां से पड़े हैं जैसे नदीके ढाहे का | बृक्षक्कभी उखडे ही तैसे चारोंगति के शरीर मृत्युरूप नदी के ढाहे केवृक्ष हैं इनके उखड़वे का क्या अाश्चर्य
For Private and Personal Use Only