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|| यह बानर ऐसे बने जिनकी दाढ़ विकराल बदन बिकराल भोंह बिकराल सिंदूर सारिखालाल मुखसों पुराण | डराने शब्दको करते हुवे प्राय कैएक हाथमें पर्वत घरे कैएक मूलसे उपारे वृक्षोंको घरे कैएक हाथसे धरती
को कूटते हुवे कईएक अाकाशमें उछलते हुवे क्रोधके भारकर रोद्रहै अंग जिनका उन्होंने राजा को घेरा कहते भए अरे दुराचारी सम्हार तेरी मृत्यु आईहै तू बानरोंको मारकर अब किसकी शरमा जायगा तब विद्युतकेश डरा और जाना कि यह बानरोंका बल नाहीं देवमाया है तब देहकी श्राशा छोड़ महामिष्ट वाणी करके विनती करता भया कि महाराज आज्ञा करो आप कौन हो महादेदीप्यमान प्रचंड शरीर जिनके यह वानरोंकी शक्ति नाही अाप देव हैं तब राजाको अति विनयवान देख महादधि कुमार बोले । हे राजा । बानर पशु जाति जिनका स्वभावही चंचल है उनको तैने स्त्रीके अपराध से हते सो मैं साधुके प्रसादसे देव भया मेरी विभूति तू देख, राजा कांपने लगा हृदय विषय भय उपजा रोमांच होय अाए तब महादधि कुमारने कही तू मत डर तब इसने कहा कि जो आप अाज्ञा करो सो करूं । तब देव इसको गुरुके निकट ले गया यह देव और राजा यह दोनों मुनिकी प्रदक्षिणा देय नमस्कार कर जाय वैठे । देवने मुनिसे कही कि मैं बानर था सो अापके प्रसादसे देवता भया और राजा विद्युतकेशने मुनिसों पूछा कि मुझे क्या कर्तव्यहै मेरा कल्याण किस तरह होय । तब मुनि चार ज्ञानके धारक तपोधन कहते भए कि हमारे गुरु निकटही हैं उनके समीप चलो अनादि काल का यही धर्म है कि गुरुओं के निकट जाय धर्म सुनिये श्राचार्य के होते सन्ते जो उनके निकट न जाय और शिष्यही धर्मोपदेश देय तो वह शिष्य नहीं कुमार्गी है आचारसे भूष्ट है ऐसा तपोधनने
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