________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
॥
३
का भारदे राजा महासुख भोगते भए मुनि सुव्रतनाथ के समय में वानवंशीयों में यह राजा महोदधि भये और लंका में विद्युतकेश भये । विद्युतकेश के और महोदधि के परम नीति भई ये दोऊ सकल प्राणीयों के प्यारे और आपस में एक चित्त देह न्यारी भई तो कहा । विद्युतकेश मुनि भये, यह वृत्तान्त सुन महोदधिभी वैरागी भए । यह कथा सुन राजा श्रेणिकने गौतम स्वामी से पूछाकि हे स्वामी राजा विद्युतकेश किसकारणसेवैरागी भए तवगौतम स्वामीनेकहाकि एकदिनविद्युत केश प्रमद नामा उद्यान में क्रीड़ा करनेको गये जहां क्रीड़ाके निवास अति सुंदर, निर्मलजलके भरेसरो वर तिनमें कमल फूल रहे हैं । सरोवरमें नाव डार राखी हैं बनमें ठौर ठौर हिंडोले हैं सुंदर वृक्ष सुंदर वेल और क्रीड़ा करनेके लिये सुवर्ण के पर्वत जिनके रत्नोंके सिवाण वृक्ष मनोज्ञ फल फूलोंसे मंडित जिनकी पल्लवमें लता अति शो हैं और लताओंसे लपटि रहेहैं ऐसे बनमें गजा विद्युतकेश राणियों के समूहमें क्रीड़ा करतेथे वह राणी मनकी हरणहारी पुष्पादिकके चूटिनेमें घासत है जिनके पल्लव समान कोमल सुगंध हस्त मुखकी सुगंधसे भ्रमर जिनपर भूमेहें क्रीड़ाके समय गणी श्रीचन्द्राके कच एक बानरने नखोंसे विदारे तब राणी खेदखिन्न भई रुधिर श्राय गया राजान राणीको दिलासा देय कर अज्ञान भावसे बानरको बाणसे बांधा बानर घायल होय एक गगनचारण महा मुनिके पास जाय पड़ा वे दयालु बानर को कांपता देख दयाकर पंच नमोकार मन्त्र देते भए सो बानर मरकर उदधि कुमार जातिका भवन बासी देव उपजा यहां बनमें वानरके मरण पीछे राजाके लोक और बानरों | को मार रहेथे सो उदधिकुमारने अवघिसे बिचारकर बानरोंको मरते जानमायामई वानरोंकी सेनाबनाई।
For Private and Personal Use Only