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पद्म
प्रकार रत्नकर निर्मापे जिनेश्वरके मंदिर पापोंके हरणहारे अनेक हैं पवन पुत्र सुंदर स्त्रियोंकर सेवित परम पुराण उदय कर युक्त अनेक गिरियों विषे अकृत्रिम चैत्यालयों का दर्शनकर विमान विषे चढा स्त्रियों को पृथिवी । १०१६॥
की शोभा दिखावता अति प्रसन्नतासे स्त्रियों से कहे है हे प्रिये सुमेरु विषे प्रति रमणीक जिन मंदिर स्वर्ण रत्नमयी भासे हैं और इनके शिखर सूर्यसमान देदीप्यमान महामनोहर भासे हैं और गिरिकी गुफा तिनके मनोहरद्वार रत्नजडित शोभानानारंगकी ज्योतिपरस्पर मिल रही है वहां अति उपजे ही नहीं सुमेरु की भूमि तल विषे अतिरमणीक भद्रशालवन है और सुमेरुकी कटि मेखला विषे विस्तार्या नंदम बन और सुपेरुके वक्षस्थलमें सौमनस बन है जहां कल्पवृक्ष कल्यताओंसे वेढे सोहे हैं और नानाप्रकार रनों की शिला शोभितहैं और सुभेरुके शिखरों पांडक बनहै जहां जिनश्वर देवका जन्मोत्सव होयह इन चारोंही बनमें चार चार चैत्यालयहें जहां निरंतर देव देवियों का आगम है यच किन्नर गंधों के संगीत कर नाद होय रहा है अप्सरा नृत्य करे हैं कल्पवृक्षों के पुष्प मनोहर हैं नानाप्रकार के मंगल द्रव्यकर पूर्ण यह भगवान्के अकृत्रिम चैत्यालय प्रानादि निधन हैं हे प्रिये पांडूक बन मैं परम अद्भुत जिनमंदिर सोहे हैं जिनके देखे मन हरा जाय, महाप्रज्वलितनिधूमअग्निसमान संध्याके वादरोंकेरंग समानउगते सूर्य समान स्वर्णमई शोभे हैं समस्त उत्तम रत्नकर शशभित सुन्दराकार हज़ारों मोतीयों की माला तिन कर मंडित महामनोहर हैं मोलावों के मोती कैसे सोहे हैं मानों जल के बुबुदाही हैं और घंटा झांझ मंजीरा मृदंग चमर तिनकर शोभित हैं चौगिरद कोट ऊंचे दरवाजे इत्यादि परम विभूति कर विराजमान ॥ हैं नाना रंगकी फरहरती ध्वजा स्वर्ण के स्तंभ कर देदीप्यमान इन अकृत्रिम चैत्यालयों कीशोभा कहांलग।
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