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पन | कर्णकुण्डल नगर विषे पूर्व पुण्यके प्रभावसे देवोंके से सुख भोगवे जिसकी हजारों विद्याधर सेवा करें । १०१ और उत्तम क्रियाका धारक स्त्रियों सहित परिवार सहित अपनी इच्छाकर पृथिवी में बिहारकरे श्रेष्ठ |
विमान विष प्रारूढ़ परम ऋद्धिकर मंडित महा शोभायमान सुन्दर बनों में देवों समान क्रीड़ा करे सो बसंतका समय पाया कामी जीवनको उन्माद का कारण और समस्त वृक्षों को प्रफुल्लित करण हारा प्रिया और प्रीतमके प्रेमका बढ़ावनहारा सुगंध चले है पवन जिसमें ऐसे समय विषे अंजनी का पुत्र जिनद्रकी भक्ति विषे प्रारूदचित्त, अति हर्ष कर पूर्ण हजारों स्त्रियों सहित सुमेरु पर्वत की
ओर चला हजारों विद्याधरहें संग जिसके श्रेष्ठ विमान विष चढे परम ऋद्धि कर संयुक्त मार्ग में बन विषे क्रीडा करते भए कैसे हैं बन शीतल मन्द सुगन्ध चले हैं पवन जहां नाना प्रकार के पुष्प और फलों कर शोभित वृक्ष हैं जहां देवांगना रमें हैं और कुलाचलोंके विषे सुन्दर सरोवरों कर युक्त अनेक मनोहर बन जिन विषे भूमर गुंजार करें हैं और कोयल बोल रही हैं और नाना प्रकारके पशु पक्षियों के युमल विचरें हैं जहां सर्व जातिके पत्र पुष्प फल शोभे हैं और रत्नोंकी ज्योतिकर उद्योतरूपहें पर्वत जहां और नदी निर्मल जलकी भरी सुन्दर हैं तट जिनके और सरोवर अति रमणीक नाना प्रकार के कमलोंके मकरंदकर रंग रूप होय रहाहै सुगंध जल जिनका और वापिका अति मनोहर जिन के रत्नोके सिवान और तटोंके निकट बडे बडे बृक्ष हैं और नदीमें तरंग उठे हैं झागोंके समूहसहित महाशब्द करती बहे हैं जिनमें मगरमच्छ आदि जलचर क्रीडा करें हैं और दोनों तट विषे लहलहाट करते अनेक बन उपवन महा मनोहर विचित्रगति लिये शोभे हैं जिनमें क्रीड़ा करबेके सुंदर महिल और नाना ।
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