________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
पुराण
१०१४६
तृणवत् तजो वे विवेकी महेन्द्रोदय नामा उद्यान में जायकर महावलनामा मुनि के निकट दिगंवर भए सर्व प्रारंभ रहित अन्तर्वाह्य परिग्रह के त्यागी विधि पूर्वक ई- ममति पालते विहार करते भए महा। क्षमावान् इन्द्रियों के व.: करणहारे विकल्प रहित निस्पृही परम योगी महाध्यानी बारह प्रकार के तप कर कर्मों को भस्म कर अध्यात्मयोग्य से शभाशुभ भावों का निराकरण कर क्षीणकपाय होय केवल ज्ञान लह अनन्त सुख रूप सिद्ध पद को प्राप्त भए जगत् के प्रपंच से छुटे । गौतम गणधर राजा । श्रेणिक से कहे हैं हे नृप यह अष्ट कुमारोंका मंगल रूप चरित्र जो बिनयवान भक्तिकर पढे सुने उसके । समस्त पाप क्षय जावें जैसे सूर्य की प्रभाकर तिमिर विलाय जाय ॥ इति ११०वां पर्व संपूर्ण ॥
अथानन्तर महाबीर जिनेन्द्र के प्रथम गणधर मुनियों में मुख्य गौतमऋषि श्रेणिकसे भामंडल का चरित्र कहते भए हे श्रेणिक विद्याधरों की जो ईश्वरता सोई भई कुटिला स्त्री उसका विषम वासनारूप मिथ्या सुख सोई भया पुष्प उसके अनुराग रूप मकरंद विषे भामण्डलरूप भूमर अासक्त होता भया चित्तमें यह चितवे जो मैं जिनेंद्री दीक्षा धरूंगा तो मेरी स्त्रियोंका सौभाग्य रूप कमलों का बन सूक जायगा ये मेरेसे अासक्त चित्तहैं और इनके बिरह कर मेरेप्राणों का वियोग होयगा में यह प्राण सुख से पाले हैं इसलिये कैयक दिन राज्यके सुख भोग कल्याण का कारण जो तप सो करूंगा यह काम भोग दुर्निवारहैं और इनकर पाप उपजगासो ध्यानरूप अग्निकर क्षणमात्रमें भस्मकरूंगाकोईयकदिनराज्य करूं बडी सेना राख जे मेरेशत्रुहें तिनको राज्य रहित करूंगा वे खडगके धारी बडे सामंतमुझसे पराङ्मुख भये खडग कहिए गैंडा तिनके मानरूप खडग भंगकरूंगा और दक्षिण श्रेणी उत्तर श्रेणी विषे अपनी
For Private and Personal Use Only