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पा
चराण
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था सो तुम दया कर निकासा आत्मबोध दिया । मेरे मन की सब जानी अब मुझे दीक्षा देवो सा कह कर समस्त कुटुम्ब का त्याग कर मुनि भया यह पामर का चरित्र सुन अनेक लोक मुनि भये अनेक श्रावक भये और इन दोनों भाईयों की पूर्व भव की खाल लोक लेयाये सो इन्होंने देखी लोकों ने हास्यकरी कि यह मांसक भक्षक स्याल थे सा यह दोनों भाई दिज बड़े मूर्ख जो मुनियों से वाद करने येथे ये महा मुनि तपोधन शुद्धभाव सबके गुरु अहिंसा महाव्रत के घारक इस समान और नहीं यह महामुनि महाव्रत रूप शिखाके धारक क्षमारूप यज्ञोपवीत धेरें ध्यानरूप अग्निहोत्र के कर्ता महाशांत मुक्ति के साधन में तत्पर और जे सर्व आरम्भ विषे प्रवरते ब्रह्मचर्य रहित वे मुखसे कहे हैं कि हम द्विज हैं परन्तु क्रिया करें नहीं जैसे कोई मनुष्य इस लोक में सिंह कहावे देव कहावे परंतु वह सिंह देव नहीं तैसे यह नाम मात्र ब्राह्मण कहावें परंतु इनमें ब्रह्मत्व नहीं और मुनिराज धन्य हैं परमसंयमी घीर क्षमावान तपस्वी जितेंद्र निश्चय थकी येही ब्राह्मण हैं ये साधु महाभद्र परणामी भगवत के भक्त महा तपस्वी यति धीरवीर मूल गुण उत्तर गुण के पालक इन समान और नहीं यह अलौकिक गुण लिये हैं । और इनहीको परिवाजक कहिये काहे से जो वह संसार को तज मुक्ति को प्राप्त होवें ये निग्रन्थ ज्ञान तिमिर के हर्ता तप कर कर्मकी निर्जरा करे हैं चीण किये हैं रागादिक जिन्हों ने महा क्षमावान पापों के नाशक इसलिये इनही को क्षमा कहिये यह संयमी कषाय रहित शरीरसे निर्मोह दिगम्बर योगीश्वरध्यानी ज्ञानी पंडित निस्पृह सोही सदाबंदिवे योग्य हैं ये निर्वाणको साधें इसलिये साधु कहिये और पंच आचारको आप आचरें औरोंको आचरावें इस लिये श्राचार्य कहिये और आगार कहिए घर उसके
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