________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
।
पद्म में सूर्य अस्त समय तुधा कर पीडित नाडी आदि उपकरण तजकर आया और अंजनगिरि तुल्य मेघ परा"
माला उठी सात अहोरात्रको झड़ भया सोपामर तो घरसे पाय न सका और वे दोनों स्य.ल अतितुधा 'तुर अन्वेरी रात्रि आहा'को निकसे सो पामरके क्षेत्र में भीजी नाडी कर्मदकरलिप्त पडीथी सो इन्होंने भक्षणकी उसकर विकराल उदर वेदना उपजी स्याल मूवे काम निर्जराकर तुम सोमदेव के पुत्र भये और वह पामर सप्तदिन पीछे क्षेत्र बाया सो दोनों स्याल मूए देख और नाडी कटी देख स्यालों की चर्म ले भागडी करीसो अबतक पामर के घरमें टिकी है और पामरमरकर पुत्र के घर पुत्र भया सो जातिस्मरण होय मौन पकड़ी जो में कहा कहों पिता तो मेरा पूर्वभव का पुत्र और माता पूर्व भव के पुत्र
की बधू इसलिए न बोलनाही मला सो यह पामर का जाव मौनी यहांही बैठा है ऐसाकह मुनि पामर | केजीव से बोले अहो तू पुत्रके पुत्र भया ।सो यह आश्चर्य नहीं संसार का एसाही चरित्र है जैसे नृत्यक
अखाडे में बहुरूपी अनेक रूपवनाय नाचे तैसे यह जीव नाना पर्य्य यरूप मेशधरनाचें हैं राजारंकहोय रंक मे राजाहोय स्वामी से सेवक सेवकसे स्वामी पितासे पुत्र पुत्र से पिता मातास भार्या जो भार्यासे मात. । यह संसार अरहट की घड़ी है। ऊपरली नीचे नीचली ऊपर, असा संसार को स्वरूप जान हे वत्स अब
तू गंगापना तज वचनालाप कर इस जन्म का पिता है तासे पिता कह माता से माता कह पूर्व भव का | व्यवहार रहा यह वचन सुन वह विप्र हर्ष कर रोमांच होय फल गये हैं नेत्र जिस के मुनि को तीन प्रद
क्षिणा दय नमस्कार कर जैसे वृक्ष की जड उखड जाय और गिर पड़े तैसे पायन पड़ा । और मुनि को | कहता भया हे प्रभो तुम सर्वज्ञ हो सकल लोक की व्यवस्था जानों हो इस भयानक संसार सागर में मैं
For Private and Personal Use Only