________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
॥२
॥
.००००००......०.००००००००००००००००००००००००००००००००००००
इस रक्त त्रुटिके दूरकरनेकेलिये तथा हरएक मनुष्यको सुलभरीतिसे जैनधर्मके स्वरूपका ज्ञान होवे इसवाते यह अत्युत्तम महान ग्रंथ श्रीपद्मनंदिपंचविंशतिका प्रकाशित किया गया है। कोई २ कहते हैं कि वह ग्रंथ साहित्यका मामूली अंथ है किंतु यह उनकी बड़ी भारीभूल है इसपंथका अभ्यासी वखवीरीति जैनधर्मका जानकार होसकता है, इसमें कोई संदह नही । इसपंथका पानदिपंचविंशतिका नाम इसा पड़ा है कि पानन्याचार्यने इसघंसमें बड़ीभारी मुंवरकवितामें पच्चीस अध्यायों में पच्चीस प्रकरणोंका वर्णन किया है सन प्रकरणोंके नाम तथा संक्षेप रीतिसे वर्णन इसप्रकार है। प्रथमही प्रथम इसपथमें धमापदेशामृतरूप अधिकारका वर्णन कियागया है इस अधिकारमें धर्मका सामान्यस्वरूप, विस्तारपूर्वक दयाधर्मका सरूप, श्रावकधर्मका स्पष्टतया स्वरूप, मुनिधर्मका विस्तारपूर्वक कथन, सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यकचारित्ररूप रजत्रय धर्मका स्वरूप, उत्तम क्षमा मार्यव भाजब सत्य शौच संयम तपः त्याग बाकिचन्य माचर्य इसप्रकार स्पष्टरीति से दशधर्मका स्वरूप, शुद्ध मात्माकी परिणतिरूप धर्मका स्वरूप और धर्मकी महिमा, धर्मका दुर्लभवना, आदिक बातोंका विस्तार पूर्वक सरलरीतिसं वर्णन कियागया है।१। दूसरा आधिकार दानोपदेशाधिकार है। इसमें उत्तम पौस आहार औषध अभय और आन इनचार दानाका विस्तार पूर्वक कथन किया गया है। तीसरा माविकार अनित्यत्वाधिकार है। इसमें समस्त वस्तुओंकी भनित्यताका वर्णन कियागया है। चौथा एकखाधिकार है इसमें एकही जीव तत्पन्न होता है एकही गर्भमें शरीर ग्रहण करता है एक बालक और युवा है इसकी दूसरा कोई चीज संसारमें नहीं है इत्यादि बातोंका भलीभांति वर्णन है। पाचवां अधिकार यतिभावनाष्टक है। इस अधिकारमें भलीभांति यतियोंकी भावनाओंका वर्णन कियागया है। छठवां अधिकार उपासकसंस्कार है इसमें भलाभांति आवकोंके प्रतोंका वर्णन किया गया है और बारह भावनाओं का भी स्वरूप दिखायागया है। सातवां देशवतोद्योतन नामक आधिकार है इसमें एकदेशत्रतका भलीभांति प्रकाश कियागया है ८ वां आधिकार सिद्धपरमेष्ठिस्तुति है इसमें सिद्धोंके स्वरूपकी उत्तम रीतिसे स्तुति कीगई है । ९वां अलोचनाधिकार है इस आधिकारमें जिनेंद्रदेवके सामने बैठकर पापोंकी वालोचनाका भलीभांति वर्णवाकिया है। १० वां अधिकार सहाधचंद्रोदय है इसमें बखूबी रीतिसे चैतन्यतत्वका वर्णन कियागया है ११ वां अधिकार निश्चयपंचाशत है इसमें ५० श्लोकोंमें निश्चयनयका वर्णन उत्तम रीतिसे कियागया है १२ वां ब्रह्मचर्यरक्षावती अधिकार समचर्यकी रक्षा किसप्रकार क्यों करना चाहिये तथा ब्रह्मचर्य की रक्षाकरनेसे मनुष्यों का फायदा होता है इनबातोंका भलीभांति वर्णन किया गया है। १३ वां अधिकार ऋषभजिनेंद्रस्तोत्र है। इसस्तोत्रमें प्राकृतभाषामें भलीभांति जिनेन्द्रभगवान की स्तुति की गई है। १४ वां जिनेंद्रस्तोत्राधिकार है इस अधिकारमें भलीभांति सामान्यरीतिसे जिनेंद्रभगवानकी स्तुति की गई है। १५ वां सरस्वतीस्तोत्र नामका अधिकार है इसमें जिनवाणी माताके गुणोंका भलीभांति वर्णन है। १६ वां स्वयंभूस्तोत्र नामका
००००००००००००००.1000.00०००००००००010.
0.00000००००००
For Private And Personal