________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
1३६९॥
१११००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००00000
पचनन्दिपश्चविंशतिका । पोत इव तब प्रवचने सल्लौना स्फुटमहो कृतजलाधम् ।
हेलयार्षित जीवाः तरंति भवसागरमनंतं । अर्थः-जिन मतुष्यों के पास जहाज मौजूद है वे मनुष्य जिसप्रकार उसजहाजमें बैठिकर जिसमें बहुत सा जलका समूह विद्यमान है ऐसे समुद्रको वातकी बातमें तरजाते हैं उसीप्रकार हे पूज्य हे जिनेश जोमनुष्य आपके वचनमें लीन हैं अर्थात् जिनमनुष्योको आपके वचनके ऊपर श्रद्धान है बड़े आश्चर्यकी बात है कि वे मनुष्य भी पलमात्रमें जिसका अंत नहीं है ऐसे संसाररूपी सागरको तरजाते हैं।
भावार्थ:-हे प्रभो इससमय जितनेभर जीव हैं सब अज्ञानी हैं उनको स्वयं वास्तविक मार्गका ज्ञान नहीं हो सकता यदि हो सकता है तो आपके वचनमें श्रद्धान रखनेपर ही हो सकता है। इसलिये हे प्रभो जिन मनुष्योंको आपके वचनोंपर श्रद्धान है वे मनुष्य अनंत भी इस संसारसमुद्रको बातकी बातमें तरजाते हैं किंतु जो मनुष्य आपके वचनोंमें श्रद्धान नहीं रखते वे इससंसार समुद्रसे पार नहीं हो सकते जिसप्रकार जहाजवाला ही समुद्रको पार करसकता है और जिसके पास जहाज नहीं वह नहीं कर सकता ॥३२॥
तुह वयणं चिय साहइ णूणमणेयंतवायवियडपहं तह हिययपईपअरं सव्वत्तणमप्पणो णाह ॥
सब वचनमेव साधयति नूनमनेकांतवादविकटपथम्।
तथा हृदयप्रदीपकरं सर्वज्ञत्वमात्मनो नाथ ॥ अर्थः-हे जिनेंद्र हे प्रभो आपके वचन ही निश्चयसे अनेकांतवादरूपी जो विकट मार्ग है उसको सिद्ध करते हैं तथा हे नाथ यह जो आपका सर्वज्ञपना है वह समस्त मनुष्यों के हृदयोंको प्रकाश करनेवाला है।
.0.000000000000000000000000000000000000044040066666666666
३६९॥
For Private And Personal