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पद्मनन्दिपश्चविंशतिका । बद्धो मुक्तोऽहमथ बैते सति जायते ननु दैतम् ।
मोक्षायत्युभयमनोविकल्परहितो भवति मुक्तः ॥४६॥ अर्थः-मैं बंधाहुवाहूं तथा मैं मुक्त हूं इसप्रकारके दैतके होतेसन्त निश्चयसे द्वैत होता है और इस प्रकारके दोनोंविकल्पोंसे रहित जीव मुक्त होता है।
भावार्थ:-हैत तथा अद्वैतका जिससमय सर्वथा त्याग हो जाता है उसीसमय मुक्ति होती है इसलिये जो जीव मुक्त होना चाहते हैं उनको दोनोंप्रकारके विकल्पोंके त्यागकरनेका प्रयत्न करना चाहिये ॥ १६ ॥ निर्विकल्पचित्तसे परमानंदकी प्राप्ति होती है इसबातका आचार्यवर वर्णन करते हैं।
गतभाविभवद्भावाभावप्रतिभावभावितं चित्तम् ।
अभ्यासाच्चिद्रूपं परमानन्दान्वितं कुरुते ॥ ४७ ॥ अर्थः-भूत भविष्यत वर्तमानकालके जो पदार्थ उनकी भावनासे भाया हुवा जो चित्त है वह अभ्यास से चैतन्यरूपको परमानंदकरसहित करता है। .
भावार्थ:-भूत भविष्यत जो विकल्प उनसे रहित भाया हुवा जोचित्त वह चैतन्यको परमादनकर युक्त करता है अर्थात् उसप्रकारकी भावनासे चित्त अत्यंत आनंदित हो जाता है॥४७॥ जो मनुष्य जिसरीतिसे आत्माको देखता है उसको उसीप्रकारके आत्माकी प्राप्ति होती है
इसबातको आचार्यवर दिखाते हैं। बद्धं पश्यन् बद्धो मुक्तं मुक्तो भवेत् सदात्मानं ।
याति यदीयेन पथा तदेव पुरमश्नते पान्थः ॥ ४८॥ अर्थः--जिसप्रकार जो रस्तागीर जिसपुरके मार्गसे गमन करता है वह उसीपुरको प्राप्त होता है
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