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॥१०॥
पद्मनान्दपश्चविंशतिका ।
अनुष्टुप । द्यूतमांससुरावेश्याखेटचौर्यपराङ्गनाः ।
महापापानि सति व्यसनानि त्यजेद्बुधः ॥ १६ ॥ अर्थः-जूआ खेलना १-मांस खाना २-मद्यपीना ३-वेश्याके साथ उपभोग करना ४-शिकार खेलना ५चोरी करना ६-परस्त्रीका सेवन करना ७ ये सात व्यसनोंकेनाम हैं तथा विद्वानोंको इन व्यसनोंका त्याग | अवश्य करना चाहिये ॥ १६ ॥ आचार्य सप्तव्यसनोंसे उत्पन्न हुई हानि तथा सप्तव्यसनोंके स्वरूपको पृथक् २ वर्णन करते हैं। प्रथमही दो श्लोकोमें धूतनामक व्यसनका निषेध करते हैं।
मालिनी। भुवनमिदमकीर्तेश्चौर्यवेश्यादिसर्वव्यसनपतिरशेषापन्निधिः पापबीजम् ।। विषमनरकमार्गेष्वग्रयायोति मत्वा क इह विशदबुद्धि तमङ्गीकरोति ॥ १७॥
अर्थः-जो समस्त अपकीर्तिओंका घर है अर्थात् जिसके पीनेसे संसारमें अकीर्ति ही फैलती है तथा जो चोरी वेश्यागमन आदि बचे हुवे व्यसनोंका स्वामी है (अर्थात् जिसप्रकार राजाके आधीन मंत्री आदि हुआ करते हैं उस ही प्रकार जूआके आधीन समस्त बचे हवे व्यसन हैं) और जो समस्त आपत्तियों का घर है तथा जिसके संबन्धसे निरंतर पापकी ही उत्पत्ति होती रहती है तथा जो समस्त नरकादिखोटीगतियोंका मार्ग ब. तलानेवाला है ऐसे सर्वथा निकृष्ट जूआनामक व्यसनको कौन बुद्धिमान अंगीकार कर सक्ता है ? अर्थात् कोई नहीं ॥१७॥
शार्दूल विक्रीड़ित ।। काकीर्तिः क दरिद्रता क विपदः क क्रोधलोभादयश्चौर्यादिव्यसनं क च क नरके दुःखं मृतानां नृणाम् ।
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