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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका । है तथापि कमल धूलिसहित है तथा जड़ है और भगवानके चरणकमल धूलि (पाप) रहित है तथा जड़ता के दूर करनेवाले हैं अतः कमलोंसे भी उत्कृष्ट भगवानके चरणकमल सदा मेरे मन में स्थित रहो तथा कल्याण करो । भावार्थ — रजका अर्थ धूलिभी होता है तथा पापभी होता है इसलिये कमलतो धूलिकर सहित है किन्तु भगवानके चरणकमल धूलिकर रहित है अर्थात चरणकमलोंकी सेवा करनेसे समस्त पापोंका नाश होजाता है । तथा कमल सर्वथा जड़ है किन्तु भगवानके चरणकमलोंमें अंशमात्र भी जड़ता नहीं है अर्थात् चरणकमलों की आराधना करनेसे समस्त प्रकारकी जड़ता नष्ट होजाती है ॥ ४ ॥ ॥४॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मालिनी । जयति जगदधीशः शान्तिनाथो यदीयं स्मृतमपि हि जनानां पापतापोपशान्त्यै । बिबुधकुलकिरीटप्रस्फुरन्नीलरत्नद्युतिचलमधुपाली चुम्बितंपादपद्मम् ॥ ५ ॥ अर्थ - नाना प्रकारके देवताओंके जो मुकुट उनमें लगी हुई जो चमकती हुई नीलमाणे उनकी जो प्रभा वही जो चलती हुई भ्रमरोंकी पंक्ति उसकर सहित जिस शान्तिनाथ भगवान के चरणकमल स्मरण किये हुवेही समस्त जनों के पाप तथा संताप को दूरकर देते हैं ऐसे वे तीन लोकके स्वामी श्रीशांतिनाथ भगवान सदा जयवंत हैं ॥ ५ ॥ स जयति जिनदेवो सर्वविद्विश्वनाथोऽवितथवचनहेतुक्रोधलोभादिमुक्तः । शिवपुरपथपांथप्राणिपाथेयमुच्चैर्जनितपरमशर्मा येन धर्मोऽभ्यधायि ॥ ६ ॥ अर्थ–सबके जाननेवाले तथा तीनलोकके स्वामी और क्रोघलोभादिकर रहित इसीलिये सत्यचचनके बोलनेवाले श्रीजिनदेव सदा जयवंत हैं जिन श्रीजिनदेवने मोक्षमार्गको गमन करनेवाले प्राणियों को पाथेय (टोसा) स्वरूप तथा उत्तम कल्याणके करनेवाले उत्कृष्ट धर्मका निरूपण किया है ॥ ६ ॥ For Private And Personal 118
SR No.020521
Book TitlePadmanandi Panchvinshatika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanandi, Gajadharlal Jain
PublisherJain Bharati Bhavan
Publication Year1914
Total Pages527
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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