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सिरिउसहनाहचरिए सेसा वि जयंतु जिणा, भवियजणमणनयणप्पसण्णगरा । जेवि नमिरहिययपउम-सहस्सकिरणा सिवं पत्ता ॥ ६ ॥ जिणवरवयणुभूआ, सन्भूअपयस्थकस्थणे निउणा । अस्थसमत्तसरुवा, सरस्सई देउ बोहं मे ॥ ७ ॥ इकारसवि गणहरे, गोयमपमुहे गुणगणसंजुत्ते । वंदामि ते वि पुज्जे, जाण पसाया सुयं होइ ॥ ८ ॥ अण्णे वि य गुणगरुआ, चउदस-दसपुग्विणोऽथ आयरिया। मज्झ सइ पसीएज्जा, अमोहवयणा जुगप्पवरा ॥ ९॥ धीरजिणीसरसासण-पहावगा सुयपहावसंपुण्णा । जे अण्णे आयरिया, ते मे नाणप्पया होतु ॥ १० ॥ सिरिहेमचंदसूरी, सव्वण्णुसमो जयम्मि जो जाओ । जास तिसहिचरियं, जए पसिद्धं विराएइ ॥ ११ ॥ तग्गयभावे गिहिअ, पाइअभासानिबद्धमेयं हि । ओज्झाय-मेरु-पंडिय - जसभद्दाणं मए हेउं ॥ १२ ॥ जयउ सिरिनेमिसूरी, उद्धारगरो कयंपतित्थस्स । तवगच्छभूसणं मे, पहावगो सासणे पगुरू ॥ १३ ॥ वच्छल्लवारिही मे, विण्णाणगुरू जएउ रिवरो। जोस सुहादिहीए, मन्दो वि समस्थओ जाओ ॥ १४ ॥ कस्थूरायरिएणं, विरइयमेयं महापुरिसचरियं ।
जाव चरमजिणतित्थं, ताव जयउ भवियबोहगरं ॥ १५ ॥ महापुरिसचरियस्स उवक्कमो
अह एयाए ओस प्पिणीइ, उसहाइ-वीरपज्जंता । तित्थयरा चउवीसं, बारह भरहाइणो चक्की ॥ १६ ॥ पडिविण्हुणो य नव नव, बलदेवा केसवा य नरवसहा । जाया उत्तमपुरिसा, तिसहि-संखाइ सुपसिद्धा ॥ १७ ॥ तेसिं पढमं घुच्छं, जिणवर-उसहस्स तेरहमवे य । सम्म इंस ण ला हा सिवपयसंपत्तिपज्जतं ॥ १८ ॥
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