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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 70 प्रसार ने राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों को प्रभावित किया। महावीर के निर्वाण के साथ ही जैनमत ने अविभाजित पंजाब में प्रवेश किया।' जैन साधुओं और श्रावकों के भ्रमण और अशोक के पौत्र सम्प्राति के कारण जैनमत का दूर दूर तक प्रचार हुआ। तक्षशिला में 500 जैन मंदिर हैं। ऋषभ ने भरत को अयोध्या और बाहुबलि को तक्षशिला सौंपा था। हड़प्पा में खुदाई में जो मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं, उनकी तुलना रामप्रसाद चंदा ने जैनमूर्तियों से की है। विशेष रूप से इसकी तुलना मथुरा में उपलब्ध ऋषभ की कायोत्सर्ग की मुद्रा से की जा सकती है। ऋषभ वृषभ का अपभ्रंश है और बैल ऋषभ का प्रतीक चिह्न है। सिंधु घाटी में पृष्ठभूमि में बैल है। यह सहज ही पता लगाया जा सकता है कि ध्यान की मुद्रा जो जैनमत में है, वही हजारों वर्ष पहले सिंधु घाटी की सभ्यता में थी। प्राचीन स्थलों से भावीखोज से पता चलेगा कि दोनों में कितनी समानता है। कांगड़ा की घाटी एक समय में जैनमत से सम्पन्न थी। मुल्तान में खरतरगच्छ के जिनदत्तसूरि ने संवत 1169 में चतुर्मास किया था। 1582 ई. में बीकानेर के मंत्री जैन बनिया कर्मचंद ने अकबर के दरबार में शरण लेकर यहाँ आवास किया। कर्मचंद के कारण अकबर के दरबार में जैनमत की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई और इस समय जिनचंद्रसूरि ने अकबर को प्रभावित किया। पंजाब में मारवाड़ से कई श्रावक परिवार और साधु पंजाब के शहरों में आए और बस गये। जैन साधुओं ने अपने उपासरे भी स्थापित किये। बदली का शिलालेख बताता है कि पांचवी शताब्दी में राजस्थान में जैनमत विद्यमान था। सावतीं शताब्दी से लेकर आधुनिक समय तक यह धर्म राजस्थान में ऊँचे पद पर साधुओं के भव्य व्यक्तित्व, शासकों और राजकुमारों के सहयोग और धनी वणिक वर्ग की उदारता के फलस्वरूप रहा। 1276 ई. के भीनमाल के एक शिलालेख के अनुसार महावीर स्वयं श्रीमाल नगर पधारे और इससे यह पता चलता है कि यहाँ जैनमत का खूब प्रसार था। गौतम श्रीमालनगर के ब्राह्मणों से अप्रसन्न थे। वे वहाँ से काश्मीर प्रस्थान कर गये और श्रीमालनगर लौटने पर इन्होंने 1. Jain Journal, Apil, 1969, Page 190 2. वही, पृ 192. 3. वही, पृ 192. It can reasonably be inferred that a cult of meditation similar to that practised by jainas formed part of the Indus Valley civilization thousand years ago. Further discoveries from other ancient sites might reveal more signs of resemblance between the Indus Cult and Jain religion. 4. वही, पृ 194 That the valley of Kangra was once a flourishing centre of Jainism. 5. वही, पृ 199 From the 7th century A.D. through modern times, this religion has remained on a high pedestal in Rajasthan by the lofty personalities of the Sadhus, the cooperation of the rulers & the princes and the magnanimity of the business community. For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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