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आनन्द शताब्दी वर्ष में रचनात्मक कार्य
'ओसवंश का उद्भव और विकास का प्रथम खण्ड- चंचलमल जी लोढ़ा के द्वारा प्राप्त हुआ। 'जैनमत और ओसवंश' के माध्यम से डा. महावीरमल जी लोढ़ा ने बहुत ही गहरी ऐतिहासिक खोज करने का कार्य किया है। इतिहास में इस वंश की उत्पत्ति कहाँ से हुई, इसके पूर्व में भारत में कैसी जातीय व्यवस्था थी, आदि का सुन्दर वर्णन करते हुये भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान पार्श्वनाथ तक और भगवान महावीर के पश्चात् आचार्य परम्परा का योगदान इस वंश की परम्परा में हुआ, इसका सुन्दर विश्लेषण करते हुए साहित्य की दृष्टि से इन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया है।
किसी भी जाति की सम्पूर्ण जानकारी के लिए उसका इतिहास जानना बहुत आवश्यक है । इस कृति में इन्होंने सामाजिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से सुन्दर संकलन किया है। यह कृति संघ, समाज एवं शोध छात्रों के लिये उपयोगी सिद्ध होगी। आनंद शताब्दी वर्ष में साहित्य की दृष्टि से यह एक रचनात्मक कार्य अनुमोदनीय है। हमारा हार्दिक आशीर्वाद है कि आप अपनी रचनात्मक शक्ति को इसी प्रकार प्रकाशित करते रहें।
मंगलमैत्री के साथ।
श्री प्रवन
(आचार्य शिवमुनि)
गणेश भवन, जालना दिनांक : 17 अगस्त, 1999
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