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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 59 जैनमत: आचार्य परम्परा (अखण्ड जिनशासन) ___ जैनग्रंथों में महावीर के प्रमुख शिष्य प्रशिष्यों की भी परम्परा का उल्लेख काल कर्म से किया गया है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर के निर्वाण के पश्चात् 62 वर्ष में तीन केवली और तत्पश्चात् 100 वर्ष में 5 श्रुतकेवली हुए। तिलोयपण्णति के अनुसार 'जिस दिन वीर प्रभु का निर्वाण हुआ, उसी दिन उनके प्रधान शिष्य केवल ज्ञानी हुए। उनके मुक्त होने पर सुधर्मास्वामी केवलज्ञानी हुए। उनके मुक्त होने पर जम्बूस्वामी केवल ज्ञानी हुए। जम्बूस्वामी के मुक्त होने पर अनुबद्ध केवली नहीं हुआ।' आगे लिखा है- नन्दि, नन्दिमित्र, अपराजित, चौथे गोवर्द्धन, पाँचवें भद्रबाहु- यह पाँच पुरुष श्रेष्ठ जगत में विख्यात श्रुतकेवली हुए। इन पाँचों के काल का सम्मिलित प्रमाण 100 वर्ष होता है। इसके पश्चात् भरतक्षेत्र में कोई श्रुतकेवली नहीं हुआ। ___ इन्द्रनंदि श्रुतावतार में तीनों केवलियों का पृथक पृथक काल दिया है। नन्दिसंघ की 'प्राकृत पदावली' में प्रत्येक केवली और श्रुतकेवली का पृथक पृथक काल दिया हैतीन केवल पाँच श्रुतकेवली 1. गौतम गणधर 12 वर्ष 1. विष्णु कुमार 14 वर्ष 2. सुधर्म स्वामी 3 वर्ष 2. नंदिमित्र 16 वर्ष 3. जम्बूस्वामी 38 वर्ष 3. अपराजित 4 वर्ष 4. गोवर्धन 19 वर्ष 5. भद्रबाहु 21 वर्ष 62 वर्ष 100 वर्ष इस तरह भगवान महावीर के निर्वाण में भद्रबाह श्रुतकेवली पर्यन्त 162 वर्ष होते हैं। श्रवणबेलमोल के शिलालेख-1 में दूसरे केवली का नाम लीतामही पायाजाता है। हरिवंशपुराण, श्रुतावतार तथा शिलालेख 105 में उसके स्थानपर सुधर्मा नाम है। 'जम्बू पण्णती' में स्पष्ट लिखा 1. तिलोयपण्णति, 1476-1484 जादो सिद्धो वीरो तद्दिवसे गोदमो परमणाणी । वारो तास्मि सिद्धे सुधम्भसामी तदो जादो। 1476॥ तस्मि कदकम्मणा से जंबूसामित्ति केवली जादो । तत्थावि सिद्धिपण्णे केवालिणों णत्थि अणुबद्धा। 1477॥ वासट्ठी वासाणि गोदम पहुदीण णाणवंताणं । धम्मपयदृण काले परिमाणं पिंडरूपेण । 1478 ।। णंदीय णंदिमित्तो विदिओ अवराजिदो तइज्जोय । गोवद्धणों चउत्थो पंचमओ भद्दबाहुत्ति ॥ 1479।। पंच इमे पुरिसवरा चउदसपूवी जगम्मि विक्खादा। तेबारस अंगधरातित्थेतिथि सिरिबद्धमाणस्स।।1483|| For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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