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का उल्लेख है। ऋग्वेद के अतिरिक्त अन्यान्य ग्रंथों में भी अरिष्टनेमि का उल्लेख हुआ है। यह माना जाता है कि कृष्ण घोर आंगिरस ऋषि के शिष्य थे। धर्मानन्द कोशाम्बी ने घोर आंगिरस को अरिष्टनेमि या नेमिनाथ माना है। यजुर्वेद के अनुसार अध्यात्म को प्रकट करने वाले संसार के सब जीवों को सब प्रकार के यथार्थ उपदेश देने वाले और जिनके उपदेश से जीवों की आत्मा बलवान होती है, उन सर्वज्ञ अरिष्टनेमि के लिये आहुति समर्पित है। इसके अतिरिक्त अथर्ववेद के माण्डूक्य प्रश्न और मुण्डक में भी अरिष्टनेमि का नाम आया है। 'महाभारत' के विष्णु के सहस्र नामों में 'शूर: शौरिर्जनेश्वर' पद व्यवहृत हुआ है। हरिवंशपुराण में कृष्ण और उसके चचेरे भाई का वंश परिचय दिया है।
___ महाराज यदु सहस्रद पयोद
पयोद कोष्टा नील अंजिक
माद्रिक पत्नी से युधाजित
देवमीढुष
सहस्रद
नील
वृष्णि अन्धक
वसुदेव अदिसपुत्र स्वफल्क चित्रक
देवकी से श्रीकृष्ण 12 पुत्र पृथु विपृथु अश्वग्रीव सुपार्श्वक गवेषण अरिष्टनेमि अश्वसुधर्मा धर्मघृत सुबाहु बहुबाहु
वैदिक परम्परा के मान्य ग्रंथ 'हरिवंश पुराण' में दिये गये यादव वंश के वर्णन से यह सिद्ध होता है कि श्रीकृष्ण और अरिष्टनेमि चचेरे भाई थे और दोनों के परदादा युधाजित और देवभीदुष सहोदर थे। जैन परम्परा में अरिष्टनेमि के पिता समुद्रविजय को वसुदेव का बड़ा सहोदर माना गया है। यह भी सम्भव है कि चित्रक समुद्र विजय का ही अपर नाम हो।
____ अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण दोनों का जन्म यदकुल में हुआ। जैन अनुश्रुति के अनुसार श्रीकृष्ण बाईसवें जैन तीर्थंकर अरिष्टनेमि के चचेरे भाई थे। उनके प्रपितामह का नाम शूर था और पितामह का नाम था अन्धिक वृष्णि। शूर ने मथुरा के निकट सौरिपुर नामक नगर की स्थापना की थी। सौरिपुर नरेश अन्धक वृष्णि के दसपुत्र थे। उनमें से सबसे बड़े पुत्र का नाम समुद्रविजय था। अन्धिकवृष्णि ने अपने बड़े पुत्र समुद्रविजय को राज्य देकर जिन दीक्षा धारण कर ली। उनके सबसे छोटे पुत्र का नाम वासुदेव था। वह अपने बड़े भाई समुद्रविजय के अनुशासन में रहता था 1. महाभारत, शांतिपर्व, पृ 288 2. जैन धर्म का वृहद इतिहास, तीर्थंकर खण्ड, पृ429 3. यजुर्वेद संहिता अ. 9, म. 25 (सातवलेकर संस्करण, वि.स. 1984)
वाजस्यनुप्रसव बभूवे मा च विश्वा भुवनाति सर्वम:. स नेमिराजा, परियाति विद्वान प्रजा पुष्टि वर्धमानो अस्मै स्वाहा।
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