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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 पुष्टि के लिये वे बिजोलिया शिलालेख को प्रस्तुत करते हैं, जिसमें वासुदेव के उत्तराधिकारी सामन्त को वत्सगोत्रीय ब्राह्मण बताया गया है। उनके अनुसार राजशेखर ब्राह्मण का विवाह अवन्ति सुन्दरी के साथ होना चौहानों का ब्राह्मण वंश से उत्पत्ति होने का अकाट्य प्रमाण है। 'कायमखां रासा' में भी चौहानों की उत्पत्ति वत्स से बताई गयी है, जो जमदाग्नि गोत्र से था। इस कथन भी पुष्टि सुण्डा तथा आबू के अभिलेख से भी होती है। इसी तरह भण्डारकर का मत है कि गुहिल राजपूतों की उत्पत्ति नागर ब्राह्मणों से थी। दूसरी ओर डा. ओझा तथा वैद्य इस ब्राह्मणवंशीय मत को अस्वीकार करते हैं और लिखते हैं कि जो भ्रांति डॉ. भण्डारकर को राजपूतों की ब्राह्मणों की उत्पत्ति से हुई है, वह द्विज, ब्रह्मक्षत्री, विप्र आदि शब्दों से हुई है, जिनका प्रयोग राजपूतों के अभिलेखों में हुआ है। परन्तु इनकी मान्यता है कि इनका प्रयोग क्षत्रिय जाति की अभिव्यक्ति के लिये हुआ है, न कि ब्राह्मण जाति के लिये। डॉ. शर्मा ने स्वीकार किया है कि भारतवर्ष का इतिहास ऐसे कई उदाहरणों को प्रस्तुत करता है, जहाँ प्रारम्भ में ब्राह्मण होते हुए कई राजवंश क्षत्रिय पद को प्राप्त हुए। ऐसे वंशों में कण्व और शंग वंश मुख्य हैं।' राजपूतों को बड़ा बताने के लिये उस समय के लेखकों, धार्मिक ग्रंथों और शिलालेखों ने कभी उन्हें दैविक शक्ति से उत्पन्न किया और कहीं उन्हें ब्राह्मणों की सन्तान बताकर सम्मानित किया। अग्निकुण्ड का सिद्धान्त बताकर उन्हें देवताओं की कृति बताना चाहा। यहाँ इतने समर्थक और अच्छा बताने वाले हैं, वहाँ उन्हें विदेशी, धर्मपरिवर्तित और आदिवासी अनार्य कहने वालों की भी कमी नहीं है। स्मिथ ने उन्हें हूण से कहा, भण्डारकर ने उन्हें नागर ब्राह्मण की सन्तान कहा, वेदव्यास ने उन्हें सूर्य और चंद्रवंशी कहा। ___डा. शर्मा ने भी यह स्वीकार किया है कि यह भी सम्भव है कि प्रारम्भ में और बाद में गुप्तकाल में कुछ विदेशी प्रजातियाँ-शक, पहलवाज (Pahlvas) और हूण भारत में आए, उत्तर भारत में बसे और वे हिन्दुओं और क्षत्रियों जैसे युद्धपरक लोगों में एकीकृत वर्ग ने उन्हें क्षत्रिय का दर्जा भी प्रदान किया है। अपनी महत्वपूर्ण परिस्थितियों के कारण वे राजपूत हुए। समय के साथ राजपूत और क्षत्रिय शब्द समानार्थक हो गये। अंत में यह स्वीकार करना पड़ेगा कि राजपूतों की उत्पत्ति का न देवीसिद्धान्त ठीक है, 1. डॉ. गोपीनाथ शर्मा, राजस्थान का इतिहास, पृ. 33-34 2. वही पृ. 34 3. वही पृ. 34 4. बी.एम. दिवाकर, राजस्थान का इतिहास, पृ. 9-10 5. G.N. Sarma, Origin of Rojputs, page 10 The sum & substance of the following discussion lead us to believe they during the penod preceding and following the supremay of early and later Guptas, many foreign races like the Saka, the Pahlavas & Huns had come to India, settled in the northern part of the country, adopted the manners & customs of Hindus & merged in the Khstriya or other worlike people, due their value & devotion to Hinduism, the priestly class conterred upon them the status of Kshatriyas. As they enjoyed a royal position they turned themselves as Rajputs. In the course of time the Kshatriyas & the Rajputs became Kuientical terms. For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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