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22 विद्यार्थी यह मानने को उद्यत नहीं हो सकता कि अग्नि से भी किसी का सृजन होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्दरबरदाई वशिष्ठ द्वारा अग्नि से इन वंशों की उद्भूति से यह अभिव्यक्त करता है, जबकि विदेशी सत्ता से संघर्ष करने की आवश्यकता हुई तो इन वंशों के राजपूतों ने अपने आपको शत्रुओं से मुकाबला करने को सजग कर दिया।'
छठी शताब्दी से 16वीं शताब्दी के अभिलेखों तथा साहित्यिक ग्रंथों की सामग्री हमें यह प्रमाणित करने में सहायता पहुँचाती है कि इन चार वंशों में तीन वंश सूर्यवंशी और एक चन्द्रवंशीय थे। राजशेखर ने महेन्द्रपाल को रघुकुल तिलक की उपाधि से अलंकृत किया है। इसी तरह कई दानपत्रों से सोलंकियों का चंद्रवंशी होना प्रमाणित है। बिहारी प्रस्तर अभिलेख में चालुक्यों की उत्पत्ति चन्द्रवंशीय बतायी गई है। हर्ष अभिलेख, 'पृथ्वीराजविजय' काव्य तथा 'हमीर महाकाव्य' से चौहान सूर्यवंशीय क्षत्रिय की संतान है । परमारों के सम्बन्ध में जहाँ तहाँ उल्लेख मिलते हैं, उनमें उदयपुर प्रशास्ति, पिंगल सूत्रवृति, तेजपाल अभिलेख आदि मुख्य है, यहाँ इन्हें अग्निवंशीय नहीं बताया गया है। इस प्रकार चार क्षत्रियों को अग्निवंशीय कहना बनावटी
और अव्यावहारिक है। 'पृथ्वीराजरासो' की प्रामाणिकता ही संदिग्ध है, इसलिये केवल 'पृथ्वीराजरासो' के आधार पर चार क्षत्रिय गोत्रों को अग्निवंशीय कहना कदापि उचित नहीं। डॉ. दशरथ शर्मा इस सम्बन्ध में लिखते हैं कि यह भाटों की कल्पना की एक उपज मात्र है।' सूर्य और चंद्रवंशीय मत
जहाँ अग्निमत का खण्डन ओझा जी ने किया है, वहाँ वे राजपूतों को सूर्यवंशीय और चंद्रवंशीय मानते हैं । वेदप्रतिपाद्य क्षत्रिय जाति में सूर्यवंश विख्यात है, दूसरा चंद्रवंश है, इन्हीं वंशों के क्षत्रियों के नाम से भी अनेक वंश विख्यात हुए हैं। ओझाजी ने अग्निवंशीय तीन गोत्रों को सूर्यवंशीय और एक को चन्द्रवंशीय कहकर उदाहरण के लिये 1028 वि. (971 ई.) के नाथ अभिलेख में, 1034 ई (971ई) के आटपुर लेख में, 1324 वि (1285 ई) के आबू के अभिलेख में तथा 1485 वि (1428 ई) के श्रृंगी ऋषि के लेख में गुहिलवंशीय राजपूतों का रघुकुल से उत्पन्न बताया गया है। इसी तरह पृथ्वीराज विजय', हमीर महाकाव्य', 'सुजानचरित्र' ने चौहानों को क्षत्रिय माना है। वंशावली लेखकों ने राठौड़ों को सूर्यवंशी, यादवों, भाटियों और चंद्रावली के चौहान को चंद्रवंशीय निर्दिष्ट किया है । ओझा जी के अनुसार राजपूत प्राचीन क्षत्रियों के वंशधर हैं और जो लेखक ऐसा नहीं मानते, उनका कथन प्रमाणशून्य है। इस मत को सभी राजपूतों की उत्पत्ति के लिये स्वीकार करना आपत्तिजनक है, क्योंकि राजपूतों को सूर्यवंशी बताते हुए उनका वंशक्रम इक्ष्वाकु से जोड़ दिया गया है, जो प्रथम सूर्यवंशीय राजा हैं। बल्कि सूर्य और चंद्रवंशीय समर्थक भाटों ने तो राजपूतों का सम्बन्ध इन्द्र पद्मनाम, विष्णु आदि से बताते हुए
1. डॉ. गोपीनाथ शर्मा, राजस्थान का इतिहास, पृ. 29 2. वही, पृ. 29-30 3. वही पृ. 30 4.जातिभास्कर, पृ. 209 5. डॉ. गोपीनाथ शर्मा, राजस्थान का इतिहास, पृ. 30
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