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436 वृहद संघ का आयोजन किया। संवत् 1805 में बादशाह अहमदशाह ने समूचा पारसनाथ पहाड़ जगतसेठ गेहलड़ा महताबराय को उपहार में दे दिया। वर्तमान में पहाड़ी की 31 देहरियों और मंदिरों की देखभाल अजीमगंज निवास दूगड़ गोत्रीय श्री बहादुर सिंह द्वारा की जाती है।'
प्रभासपाटन- सोमनाथ मंदिर से 400 मीटर दूरी पर इस मंदिर में चन्द्रप्रभ भगवान का अति प्राचीन मंदिर है। ओसवाल श्रेष्ठि पेथड़शाह, सभराशाह, राजसी सधवी ने संघ समायोजन कर पुण्य कमाया। .
भद्रेश्वर गच्छ के किनारे भद्रेश्वर ग्राम में भगवान पार्श्वनाथ का प्राचीन मंदिर है। संवत् 1682 में उपकेश वंशीय लालनगोत्रीय सेठ वर्धमान शाह ने तीर्थ का उद्धार करवा कर महावीर स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई।
अनहिलपाटन गुजरात के मेहसाणा क्षेत्र में स्थित यह नगर चावड़ा वंश के वनराज ने विक्रम संवत 802 में बसाया था। संवत 1371 में शत्रुजय तीर्थ के उद्धारक ओसवाल श्रेष्ठि समराशाह ने यहाँ के मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया।'
गिरनार- यह सौराष्ट्र प्रदेश का प्राचीनतम तीर्थ है। यहाँ चौदहवीं शताब्दी में ओसवाल श्रेष्ठि समरसिंह सोनी ने, सत्रहवीं शताब्दी में वर्धमान शाह ने और बीसवीं सदी ने ओसवाल श्रेष्ठि नरसी केशवजी ने तीर्थों का जीर्णोद्धार करवाया।
यह कहा जा सकता है कि पश्चिम राजस्थान के अनेक नगर और ग्राम श्वेताम्बर परम्परा के प्रसिद्ध जैन तीर्थ रहे हैं। इन तीर्थ स्थानों के द्वारा ओसवंशी श्रावकों ने जैनमत के धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रतिमानों के परिरक्षण में अपूर्व योग दिया है। जैन शिक्षण संस्थाएं
जैनमत की श्वेताम्बर परम्परा की शिक्षण संस्थाओं के द्वारा ओसवंशियों ने जैनमत के सांस्कृतिक प्रतिमानों के सम्प्रेषण में योग दिया है।
__ श्वेताम्बर जैन महाविद्यालयों में श्री जैन सुबोध महाविद्यालय जयपुर, जैन कॉलेज बीकानेर, सेठिया विद्या मंदिर सुजानगढ़, पी.यू. कॉलेज फालना, जैन स्नातकोत्तर महाविद्यालय बीकानेर, जैन टी.टी. कॉलेज अलवर, जे.बी.एन. वाणिज्य महाविद्यालय राणावास, प्राज्ञ जैन महाविद्यालय, विजयनगर, वीर बालिका महाविद्यालय जयपुर और जवाहर विद्यापीठ ग्रामीण महाविद्यालय, कानोड़ आदि मुख्य है।
उच्च और उच्चतर स्तर के श्वेताम्बर जैन विद्यालय ब्यावर, अलवर, जयपुर, बीकानेर, चुरू, सुजानगढ़, ओसिया, भोपालगढ़, लाडनू, फालना, राजावास, वरकाणा, भीलवाड़ा, गुलाबपुरा, कानोड़, छोटी सादड़ी, रानी, उदयपुर, और जोधपुर आदि में है। इसके अतिरिक्त
1. इतिहास की अमरबेल, ओसवाल, प्रथम भाग, पृ307 2. वही, पृ284 3. वही, पृ285 4. वही, पृ289
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