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967 ई की महावीर प्रतिमा का 954 ई का लेख, जिसकी प्रतिष्ठा वृहदगच्छीय यक्षदेवसूरि द्वारा की गई'), अजारी तीर्थ (मारवाड़ की छोटी पंचतीर्थी का एक तीर्थ, पिंडवाड़ा के पास, 961 ई से 1397 ई तक के कई अभिलेख प्राप्त हुए हैं, 1397 ई में पिप्पलागच्छाचार्य के सोमप्रभसूरि ने सुमतिनाथ की प्रतिमा निर्मित करवाई), लोटाणा तीर्थ (शांतिनाथ पंचतीर्थी का 1054 ई का प्राचीनतम लेख मिलता है, जिसमें उपकेशगच्छीय देवगुप्तसूरि का उल्लेख है,) आदि महत्वपूर्ण श्वेताम्बर परम्परा के तीर्थ हैं। चित्तौड़ (8वीं शताब्दी के सन्त हरिभद्रसूरि का जन्म और कार्यक्षेत्र रहा, जिनदत्तसूरि का पट्ट समारोह 11 12 ई. में यहीं सम्पन्न हुआ,' एक मंदिर का जीर्णोद्धार भण्डारी श्रेष्ठि वेला ने 1448 में करवाया, यह तपागच्छ का मंदिर है, शेष खरतरगच्छ के हैं, 12वीं शताब्दी में यह जैनमतावलम्बियों का महत्वपूर्ण तीर्थ माना जाता था।
जैसलमेर के तीर्थ धर्म. कला और साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह राजस्थान में जैनधर्म का गढ़ रहा है। यहाँ के कुशल शिल्पियों ने छेनी और हथौड़ों के माध्यम से नीरस पाषाणों में जिस प्रकार कला की रसधारा बहाई, वह अद्वितीय है। यह श्वेताम्बर सम्प्रदाय का बहुत बड़ा तीर्थ है। यहाँ 10 जैनमंदिर है। चित्रकूट दुर्ग में स्थित चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर 1218 ई में क्षेमंधर के पुत्र जगधर ने निर्मित करवाया। सम्भवनाथ मंदिर का प्रारम्भ 1437 ई में चोपड़ा गोत्रीय हेमराजपूना ने करवाया।' इस मंदिर के 1440 ई के एक लेख में चोपड़ा वंशीय श्रेष्ठियों की वंशावली दी गई है। त्रिकूट दुर्ग में शीतलनाथ मंदिर डागा लूणसा मूणसा ने 1452 ई में करवाया। शांतिनाथ और अष्टापद मंदिर का निर्माण चोपड़ा गोत्रीय खेता और पांचा ने करवाया
और प्रतिष्ठा खरतरगच्छ के जिनसमुद्रसूरि ने 1479 ई में की। चन्द्रप्रभस्वामी मंदिर की प्रतिष्ठा भणसाली गोत्रीय बीदा ने 1452 ई में करवाई। त्रिकूट दुर्ग के ऋषभदेव मंदिर का निर्माण चोपड़ा गोत्रीय सच्चा के पुत्र धन्ना ने 1479 ई में करवाया और प्रतिष्ठा 1479 ई में करवाई। अंतिम और आठवें मंदिर- महावीर स्वामी मंदिर का निर्माण 1416 ई में ओसवाल वंश के वरडिया गोत्र के दीपा ने करवाई।
नगर में दो और मंदिर महत्वपूर्ण है- सुपार्श्वनाथ मंदिर (1812 ई) और विमलनाथ मंदिर (1609 ई)। लोद्रवा भी नगर निर्माण के बाद जैनधर्म का केन्द्र रहा।
रणकपुर जैनतीर्थ श्वेताम्बर परम्परा का प्रसिद्ध तीर्थ है। इस मंदिर को राणपुर का चौमुखमंदिर भी कहते हैं। यह मारवाड़ के बड़े पंचतीर्थी का एक मंदिर है। इस मंदिर में आदिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यह सुन्दर और कलात्मक है। यह भारत का विशिष्ट श्वेताम्बर जैनतीर्थ
1. श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 331 2. Ancient Cities & Towns of Rajasthan, Page 131. 3. श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, 321 4. प्रभावक चरित्र, पृ171-182 5. मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म, पृ243 6. खरतरगच्छ वृहद गुर्वावली, पृ 34 7. जैन लेख संग्रह, क्रमांक 2139 8.जैन लेख संग्रह (नाहर) भाग 3. क्रमांक 2400
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