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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 427 मध्यकाल की धातु प्रतिमाओं में बसन्तगढ़शैली की धातु प्रतिमाओं में अचलगढ के मंदिर की धातु प्रतिमाएं महत्तवपूर्ण है।' डूंगरपुर में 12 मूर्तियों का वजन 1444 मन है। 1603 ई. में सिरोही के अजितनाथ मंदिर में चिंतामणि पार्श्वनाथ की 1313 संवत् की प्रतिमा बदलती कलात्मक रुप को सूचित करती है। __ मंदिरों में तीर्थंकरों के अतिरिक्त सरस्वती, अम्बिका, पद्मावती, चक्रेश्वरी, सच्चिकादेवी, मरुदेवी, यक्ष, कुबेर, आचार्यों, दानियों और संरक्षकों, हिन्दूदेव देवताओं की मूर्तियां मिलती है। अर्बुदमण्डल शिल्पकारों का गढ़ रहा है। प्रस्तर प्रतिमाओं में भरतपुर क्षेत्र में जटाधारी आदिनाथ की मूर्ति है। पत्थर और पारे की कुबेर की मूर्ति विलक्षण है । भरतपुर में नेमिनाथ की 2'-4" ऊँची मूर्ति गुप्तकालीन कला परम्परा की है। खींवसर से प्राप्त 11वीं सदी की महावीर की विशालकाय प्रतिमा अलौकिक है। पिलानी के पास नरभट्ट में सुमतिनाथ और नेमिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा की अन्य प्रतिमाए गुप्तोत्तरकालीन है। अलवर प्रदेश में 11वीं शताब्दी की 24 फीट ऊँची विशाल जैन प्रतिमा भंगुर ग्राम से खोजी गई है। 12वीं शताब्दी के पश्चात् की प्रस्तर प्रतिमाएं अधिक सुन्दर तो नहीं, किन्तु कलात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। नागदा के अद्भुतजी के मंदिर में शांतिनाथ की 10 फीट ऊँची एक पद्मासन प्रतिमा अद्भुत है। यह 1473 में निर्मित हुई। अधिकतर मूर्तियां 12वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी के मध्य की है, जिनके लेखों में आचार्यों, प्रतिष्ठाकारों, श्रावकों, उनकी जाति, गच्छ, और परिवार आदि के वर्णन है। राजस्थान के जैन प्रस्तरकाल में स्थानीय शिल्पियों की साधना रही है। जैन स्थापत्य कला 'राजस्थान के जैनमंदिर सात्विक, पवित्र भावनाओं के उद्गाता, साहित्य के संरक्षक, साधना के केन्द्र स्थल होने के साथ ही अपने उत्कृष्टतम स्थापत्य, शिल्पवैभव एवं सांस्कृतिक भूमिका के लिये विख्यात रहे हैं।' राजस्थान के कुछ मंदिर आठवीं शताब्दी के पूर्व के भी थे, जिन्हें ध्वस्त कर दिया गया। 8वीं शताब्दी के ही मंदिरों में जैन स्थापत्य का विशिष्ट स्वरूप दृष्टिगत होता है। जैन मंदिरों का निर्माण अनेक धनी ओसवंश के श्रेष्ठियों ने भी करवाया। जैनमंदिर मूलत: स्थापत्य की नागर शैली के हैं, जिसका शिखर गोल होता है, अग्रभाग पर कलशाकृति बनाई जाती है, शिखर गर्भगृह के ऊपर होता है। मंदिर निर्माण सादगी और पवित्रता होती है। 1. मध्यकालीन, राजस्थान में जैनधर्म, पृ 297 2. वही, पृ299 3. History of Indian & Eastern Architecture, Page 250. 4. मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म.4297 5. वही, पृ305 6. वही, पृ305 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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