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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 13. सावणसुखा / शामसुखा 1192 जिनदत्तसूरि 14. 1191 देवगुप्तसूरि 15. पींचा 1595 जिनचंद्रसूरि 16. रामपुरिया 1727 रामपुरा 17. भटेनरा चौधरी, 12वीं सदी 18. गूगलिया / गुलगुलिया 19. बुच्चा 20. आसाणी 12 वीं सदी 21. ओसवाल 12 वीं सदी 735 1800 22. घलूण्डिया 23. घेमावत कछवाहा www.kobatirth.org खरतर उपकेश चित्तौड़ खरतर जैसलमेर खीमसिंह (चोरड़िया गोत्र की शाखा) भटनेर 1. राजपूत वंशावली, पृ 106 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सावणसुखा गोत्र की शाखा कुंवरजी अभ पांचीसिंह गुलराज ओसतवा भट्टारकशांतिसूर्व कल्लाजी गलूण्ड हस्तीकुण्डी घेमोजी कछवाहा राजपूतों से निसृत ओसवंश के गोत्र For Private and Personal Use Only बुच्चाशाह आसाणी कछवाहा वंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक अनेक भ्रांतियां और विसंगतियां हैं। कुछ संस्कृत शिलालेखों में इन्हें कच्छपगात या कच्छपरि कहा गया है।' जनरल कनिंघम के अनुसार कछुवाहा, कच्छपगात और कच्छपरि का अर्थ कछुओं को मारने वाला है। कुछ लोगों का अनुमान है कि कछवाहों की कुलदेवी का नाम कछवाही (कच्छपवाहिनी) था, जिसके कारण ही इस वंश का नाम कछवाहा पड़ा। यह दोनों मत मतगढंत है। कछुआ मारना राजपूतों के लिये गौरव की बात नहीं है। कर्नल टाड, शेरिंग, इलियट और कुरु के अनुसार यह राम के द्वितीय पुत्र कुश का वंश है। कुश की पूर्ण वंशावली में सुमित्र के पुत्र कूर्म और कूर्म के पुत्र कच्छप हुए। कच्छप के ही वंशज कछवाहे कहलाए। 363 शिशुनाग ने कछवाहों से अयोध्या छीन लिया, तो ये सोन नदी के किनारे विहार में रोहताशगढ में जा बसे । कुछ विद्वानों के अनुसार यहाँ का दुर्ग कछवाहों ने ही बसाया था। यहाँ से एक शाखा ने आकर नरवरगढ (मालवा) का दुर्ग बनवाया । वि. सं 977 और वि.सं 1034 ग्वालियर के शिलालेख के अनुसार इन्होंने विजयपाल परिहार से ग्वालियर का दुर्ग छीन और फिर स्वामी बन गये । लक्ष्मण का पुत्र वज्रदामा कछवाहा शासक बना। वज्रदामा के पुत्र कीर्तिराज के वंशधर क्रमश: मूलदेव, देवपाल, पदमपाल, और महापाल हुए। कुतुबदीन ऐबक के शासनकाल तक ये ग्वालियर के शासक रहे। छोटे पुत्र सुमित्र के वंशज क्रमशः मधु, ब्रह्मा, कहान, देवानीक, ईशसिंह - ईश्वरीसिंह, सोढदैव देहलरायय (दुर्लभराय या ढोलाराव) हुए। ढोला राय दौसा (जयपुर)
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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