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10. राजकोष्ठागार/ रायकोठारी
11. कावड़िया
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12.
13. विनायकिया
14. गांधी / गांधी मेहता / रायगांधी
15. पटवा
प्रारम्भिक सभी 18 गोत्र
तातेड़, बाफणा, करणावट, बलाहा, मोरख, कलहट, विरहट, श्री श्रीमाल, श्रेष्ठि, संचेति, आदित्यनाग, भूरि भहु, चिंचट, कुमट, डिडू, कन्नोजिया और लघु श्रेष्ठ और इनकी ज शाखाओं पहले महाजन कहलाते थे, वे ओसवंशी गोत्र हो गये और ये सभी गोत्र विविध क्षत्रियों से वीर संवत् 70 में ही स्थापित हो गये । राजपूतकाल में इन गोत्रों को प्रतिबोधित किया, संस्थापित नहीं ।
आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि ने ओसिया के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर कुछ गोत्रों चरड, सुघड़, लुंग, गहिया, आर्य, काम, गरुड़, सालेचा, बागरेचा, चोपड़ा, सफला, नक्षत्र, आभड़, छावत, तुण्ड, पदबोलिया, हथंडिया, मण्डोवरा, गुदेचा, छाजेड़, और राखेचा और इनकी शाखाओं को प्रतिबोधित किया, यह सभी क्षत्रिय थे ।
गोत्र
1. कांकरिया 1142 जिनवल्लभसूरि खरतर 2. टांटिया
1169 जिनदत्तसूरि
खरतर
खरतर
3. धाड़ीवाल 1169 जिनदत्तसूरि 4. फोफलिया 1197 जिनदत्तसूरि
खरतर
खरतर
1197 जिनदत्तसूरि खरतर
भावदेवसूर उपकेश
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इसके अतिरिक्त विविध गच्छों के अनेक आचार्यों ने जिन जिन गोत्रों की स्थापना की, उनके पूर्वपुरुषों की जातियों का विवरण उपलब्ध नहीं है, इसलिये जब तक विवरण ज्ञात नहीं हो तो उनकी पूर्व जाति को क्षत्रिय (गोत्र ज्ञात नहीं मानना चाहिये ।
ओसवंश के कतिपय गोत्र जो क्षत्रियों से निसृत हुए, उनके विवरण उपलब्ध हैंसम्वत आचार्य गच्छ
प्रतिबोधित व्यक्ति
5. बच्छावत 1197 जिनदत्तसूरि 6. बोथरा
(बोहित्थरा)
7. बाठिया
912
स्थान
कांकरोल भीमसिंह
सांवल जी
डेडूजी
समधर
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बच्छाजी
बच्छाजी
परमा
रावमधु देवादि (आबू के पास)