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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 334 10. राजकोष्ठागार/ रायकोठारी 11. कावड़िया www.kobatirth.org 12. 13. विनायकिया 14. गांधी / गांधी मेहता / रायगांधी 15. पटवा प्रारम्भिक सभी 18 गोत्र तातेड़, बाफणा, करणावट, बलाहा, मोरख, कलहट, विरहट, श्री श्रीमाल, श्रेष्ठि, संचेति, आदित्यनाग, भूरि भहु, चिंचट, कुमट, डिडू, कन्नोजिया और लघु श्रेष्ठ और इनकी ज शाखाओं पहले महाजन कहलाते थे, वे ओसवंशी गोत्र हो गये और ये सभी गोत्र विविध क्षत्रियों से वीर संवत् 70 में ही स्थापित हो गये । राजपूतकाल में इन गोत्रों को प्रतिबोधित किया, संस्थापित नहीं । आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि ने ओसिया के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर कुछ गोत्रों चरड, सुघड़, लुंग, गहिया, आर्य, काम, गरुड़, सालेचा, बागरेचा, चोपड़ा, सफला, नक्षत्र, आभड़, छावत, तुण्ड, पदबोलिया, हथंडिया, मण्डोवरा, गुदेचा, छाजेड़, और राखेचा और इनकी शाखाओं को प्रतिबोधित किया, यह सभी क्षत्रिय थे । गोत्र 1. कांकरिया 1142 जिनवल्लभसूरि खरतर 2. टांटिया 1169 जिनदत्तसूरि खरतर खरतर 3. धाड़ीवाल 1169 जिनदत्तसूरि 4. फोफलिया 1197 जिनदत्तसूरि खरतर खरतर 1197 जिनदत्तसूरि खरतर भावदेवसूर उपकेश Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसके अतिरिक्त विविध गच्छों के अनेक आचार्यों ने जिन जिन गोत्रों की स्थापना की, उनके पूर्वपुरुषों की जातियों का विवरण उपलब्ध नहीं है, इसलिये जब तक विवरण ज्ञात नहीं हो तो उनकी पूर्व जाति को क्षत्रिय (गोत्र ज्ञात नहीं मानना चाहिये । ओसवंश के कतिपय गोत्र जो क्षत्रियों से निसृत हुए, उनके विवरण उपलब्ध हैंसम्वत आचार्य गच्छ प्रतिबोधित व्यक्ति 5. बच्छावत 1197 जिनदत्तसूरि 6. बोथरा (बोहित्थरा) 7. बाठिया 912 स्थान कांकरोल भीमसिंह सांवल जी डेडूजी समधर For Private and Personal Use Only - बच्छाजी बच्छाजी परमा रावमधु देवादि (आबू के पास)
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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