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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 242 जटिल है। शिलालेखों में जहाँ केवल संवत् है और विक्रम शब्द का अभाव है, वहाँ केवल संवत शब्द संशय उत्पन्न करता है। एक और उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इस शिलालेख में “संवत्सर दशशत्याम धिकायं वत्सरैस्त्रयो दशाभि: फाल्गुन शुक्ला तृतीया' आदि शब्दों का प्रयोग विक्रम संवत स्थापित नहीं करता। संवत् 1013 को नंदिवर्धन संवत माने तो विक्रम संवत 501 आता है और वीर संवत माने को विक्रम संवत 543 आता है। भारत देश में विभिन्न संवतों को प्रचलन समय समय पर होता रहा है। अत: निश्चित समय स्थापित करने के लिये अन्य साक्ष्यों का सहारा अत्यावश्यक हो जाता है। श्री मांगीलाल भूतोड़िया की धारणा है कि प्रतिहार शासक वत्सराज का समय छठी शताब्दी का होना चाहिये । उद्योतन सूरि रचित 'कुवलयमाल' में प्रतिहार शासक वत्सराज का उल्लेख है। कुवलयमाला का रचनाकाल विक्रम छठी शती माना जाता है। डॉ. दशरथ शर्मा की मान्यता है कि प्रतिहार शासक वत्सराज के राज्य में जालौर में उद्यतन सूरि ने कुवलयमाला' की रचना वि.सं 778 में की। ___ डॉ. के.बी. रमेश ने अपने एक लेख (1972) में ओसियां में हरिहर मंदिर के आंगन में सुरक्षित वि.स. 893 और 992 के दो स्मारक लेखों का उल्लेख किया है। निस्संदेह ओसियां उस समय एक समृद्ध नगर रहा होगा।' महावीर मंदिर के प्रांगण में तोरण पर उत्कीर्णित संवत् 1035 के प्रतिष्ठा लेख के कुछ भी पूर्णचंद नाहर ने 'जैन लेखसंग्रह' (लेखांक 789) में प्रकाशित किये हैं। श्री भण्डारकर ने भी उक्त अंश में उत्कीर्णित सं 1035 आषाढ सुदि 10 आदित्यवारे स्वाति नक्षत्रे श्री तोरण प्रतिष्ठित मिति के आधार पर तोरण द्वार की मात्र स्थापना तिथि दी थी। परन्तु यह पाठ तोरण उत्कीर्णित अभिलेख का एक अंश मात्र था। पंजाब विश्वविद्यालय के पुरातत्वविभाग के प्रो. देवेन्द्र हाण्डा ने तोरण के स्तम्भकी अष्टकोणात्मक पट्टिका पर उत्कीर्णित अभिलेख को ओसिया की प्राचीनता' आलेख के साथ कर्मयोगी श्री केसरीमल जी सुराणा अभिनन्दनग्रंथ में प्रकाशित किया है, जिसमें “यति संवत्सराणां सुर मुनि सहित विक्रम.... गुरौ शुक्ल पक्षे पंचभ्याम्.... स कीर्तिकार..... कषट देवयश: सद्य सोनाशिखे...... आदि पाठ द्रष्टव्य है। प्रो. हाण्डा के अनुसार सुरमुनि से सुर आने 33 और मुनि यानि 7 यानि विक्रम संवत् 733 में निर्मित अर्थ अभिप्रेत है।"5 सुरमुनि को उल्टा न पढकर यदि सीधा पढे तो क्या यह वि.स. 337 सम्भव नहीं है। इस दृष्टि से यह स्तम्भ वि.स. 337 अर्थ अभिप्रेत है । इस प्रकार उल्टा पढे तो विक्रम संवत् 733 1. इतिहास की अमरबेल-ओसवाल, प्रथम खण्ड, पृ77 2. वही, पृ78 3. Rajashtan through the Ages, Page 110. In the Pratihara period (750-1018 A.D.) itself the earliest reference to the ward, Gurjara, is found in the 'Kuvlayamala' of Uddyotana Suri written at Jalore, in 778 A.D. in the reign of redoubtable Pratihara ruler Ranhastin Vatsraja, 4. इतिहास की अमरबेल-ओसवाल, प्रथम खण्ड, पृ78 5. वही, पृ79 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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