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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 240 जो इस नगरी को आठवीं शताब्दी के पूर्व की सिद्ध करती हो। इसमें प्रस्तर युग के सूक्ष्म प्रस्तर उपकरण उपलब्ध हो चुके हैं, जिससे इस नगरी की प्राचीनता स्वतः सिद्ध हो जाती है। जहाँ तक अभिलेखों का प्रश्न है ओसिया के महावीर स्वामी के मंदिर में अभिलेख लगा हुआ है, वह संवत् 1013 का है, एक स्तम्भ पर वि.सं 1075 का एक छोटा सा लेख है, मंदिर के तोरण और मूर्तियों पर कई लेख उत्कीर्ण है वे सचिया माता के मंदिर में जो प्रशस्ति है, वह भी संवत् 1236 की है। वास्तुविदों की दृष्टि से मन्दिरों के भग्नावशेष आठवीं शताब्दी के पूर्व के नहीं है, ओझा जी ने इन मंदिरों को नवीं शताब्दी का माना है, मुहणौत नैणसी ने मारवाड़ के परगना की विगत में 11 वीं शताब्दी का, डॉ. डी. आर. भण्डारकर ने आठवीं, नवीं, ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के माने हैं । अतः अभिलेखी प्रमाण की दृष्टि से ओसिया की प्राचीनता आठवीं शताब्दी के पहले की सिद्ध नहीं होती। इतिहासकारों में डॉ. भण्डारकर, श्री गौरीशंकर हीराचंद ओझा, डॉ. जगदीशसिंह गहलोत, पण्डित विश्वेश्वरनाथ रेऊ, मुनि दर्शनविजय, तपागच्छ पट्टावली, श्री सुख सम्पतराज भण्डारी, श्री पूरणचंद जी नाहर, श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा सभी मानते हैं कि ओसिया को आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच बसाई गई। वस्तुत: केवल स्थापत्य, शिल्प और शिलालेखों दृष्टि से ही किसी नगर की प्राचीनता का अनुमान लगाना उचित नहीं है । धर्माचार्यों द्वारा मौखिक परम्परा से लिखित साहित्य और भाटों और भोजकों की मौखिक परम्परा द्वारा रक्षित साहित्य को भी प्रमाण रूप में स्वीकार करना चाहिये । वर्तमान नगर से 3 मील दूर जो तिवरी ग्राम अवस्थित है, वह प्राचीन नगरी का तेलीपाडा रहा हो, यहाँ से 6 मील दूर स्थित पण्डित जी की ढाणी कभी इस नगर का पण्डितपुर रहा हो, 6 मील दूर स्थित खेतासर, इसी नगर का क्षत्रीपुरा रहा हो, 24 मील दूर लोहावर इस नगर की लुहारों की बस्ती हो, यह बहुत सम्भव है। इस नगर से 20 मील दूर स्थित घटियाली ग्राम को प्राचीन ओसियां का प्रवेश द्वारा माना जाता है। घटियाली के उत्खनन में अनेक प्राचीन चिह्न मिले हैं। यहां कभी 108 जैनमंदिर थे, जिनमें से मात्र एक महावीर स्वामी का मंदिर बचा है। दस बारह मंदिरों के अवशेष भी दृष्टिगोचर होते हैं । इन्हीं खण्डहरों से प्राचीन नगर से विस्तार का अंदाज लगाया जा सकता है। तत्कालीन उपकेशनगर के 12 योजन लम्बा और 9 योजन चौड़ा बसा होने उल्लेख ग्रंथों में पाया जाता है।' जिस महावीर मंदिर में ओसवाल जाति के संस्थापक श्री रत्नप्रभसूरि द्वारा भगवान महावीर की मूर्ति की प्रतिष्ठा किया जाने का उल्लेख ग्रंथों में है, ओसिया का वह महावीर मंदिर अब भी विद्यमान है। इसी मंदिर में जिनदास श्रावक द्वारा निर्मित रंगमंडप का संवत् 1013 का एक शिलालेख है, जिसमें प्रतिहार साम्राज्य के संस्थापक महाराजा वत्सराज की प्रशस्ति है | 2 मूल मंदिर में आदिनाथ भगवान की सुन्दर प्रतिमाएं है, जिन पर संवत् 1551 उत्कीर्ण है । जनश्रुति के आधार पर यह 400 वर्ष पूर्व राजा सम्प्रति के काल की बताई जाती है। 1. इतिहास की अमरबेल ओसवाल, प्रथम खण्ड, पृ 70 2. वही, पृ 70 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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