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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 233 छानबीन नहीं की जा सकती। दूसरे उस समय इस जाति के न होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि ओसवाल के मूल 18 गोत्रों की उत्पत्ति क्षत्रियों के जिन अट्ठारह शाखाओं से होना जैनाचार्यों ने लिखा है, उन शाखाओं का अस्तित्व भी उस समय नहीं था, तब कोई भी जिम्मेदार इतिहासकार उन शाखाओं से 18 गोत्रों की उत्पत्ति किस प्रकार मान सकता है। विक्रम के 400 वर्ष पूर्व से लेकर विक्रम की सातवीं शताब्दी तक अर्थात लगातार 300 वर्षों में इस जाति के सम्बन्ध में किसी भी प्रामाणिक विवेचन का न मिलना, इसके अस्तित्व के सम्बन्ध में शंका उत्पन्न कर सकता है। ___ श्री पूरणचंद्र नाहर की मान्यता है, जहाँ तक मैं समझता हूँ प्रथम राजपूतों से जैनी बनाने वाले श्री पार्श्वनाथ संतानीय श्रीरत्नप्रभसूरि जैनाचार्य थे। उक्त घटनाको प्रथम श्री पार्श्वनाथ स्वामी की इस परम्परा का नाम उपकेशगच्छ भी न था। क्योंकि श्री वीर निर्वाण के 980 वर्ष पश्चात् श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने जिस समय जैनागमों को पुस्तकारूढ किये थे, उस समय के जैन सिद्धान्तों में और 'श्री कल्पसूत्र की स्थिरावली' आदि प्राचीन ग्रंथों में उपकेशगच्छ का उल्लेख नहीं है। उपरोक्त कारणों से सम्भव है कि संवत् 500 के पश्चात् और संवत् 1000 के पूर्व किसी समय उपकेश या ओसवाल जाति की उत्पत्ति हुई होगी और उसी समय से उपकेशगच्छ का नामकरण भी हुआ होगा। ___ 'ओसवाल वंश: अनुसंधान के आलोक में' के लेखक श्री सोहनराज भंसाली ने भी भण्डारी जी के पदचिह्नों का अनुगमन कर कहा कि इतिहास और पुरातत्व जैन-अजैन विद्वान ओसवाल जाति की उत्पत्ति 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच होना मानते हैं।' श्री भंसाली ने अनेक लेखकों- श्री गौरी शंकर हीराचंद ओझा, डॉ.डी. आर. भण्डारकर, मुनि दर्शनविजय, मुहणोत नैणसी, श्री अगरचंद नाहटा, श्री जगदीशसिंह गहलोत और श्री पूर्णचंद नाहर आदि के विचार उद्धृत किये। ओझा जी के अनुसार ओसवालों की उत्पत्ति का समय वीर निर्वाणसे 70 वर्ष पश्चात् (विक्रम संवत 400 वर्ष पूर्व) और भाटों का 222 संवत् कल्पित है, क्योंकि उस समय ओसिया नगरी की स्थापना का पता नहीं था। पुरातत्ववेत्ता डॉ. डी.आर. भण्डारकर ने माना है कि उप्पलदेव ने परिहार राजा के यहाँ शरण माँगी। परिहार राजा ने उसे भेलपुर पट्टन दे दिया और कहा कि वहाँ शरण लो और उसे पुन: आबाद करो, जो अभी उजड़ा हुआ है। उप्पलदेव ने उसे पुन: आबाद किया, वही ओसिया के नाम से प्रसिद्ध हुआ क्योंकि उपलदेव ने वहाँ ओसला किया था। मारवाड़ी भाषा में ओसला शब्द का अर्थ है, शरणार्थी का शरणस्थल ।' यह समय नवीं शताब्दी हो सकता है। 'उपकेशगच्छ पट्टावली' के अनुसार उप्पलदेव सूर्यवंशी था और भीनमाल का राजा 1. ओसवाल जाति का इतिहास, पृष्ठ 18-19 2. श्री सोहनराजभंसाली, ओसवाल वंश, अनुसंधान के आलोक में, 43 3. वही, पृ3 4. ओसवाल वंश: अनुसंधान के आलोक में, पृ4 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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