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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 224 शक्त पन्थ मत्त बाद शीस संदूरी टीका ।। समझ हुआ थिर मन ध्यान अन्तर सू खोले । शिष्य प्रति महाराज मुसक पुख वायक बोले ।। गुरू कहे वार लागी गणीत कहो शिष्य कीण कारणे । शिष्य कहे आहार मिल्यो नहीं मैं फिरीयो घर 2 बारणे ।। शिष्य मुख से सुन वैण आहार परथवी परठायो । पीवण सर्प हुअ गयो महल नृप सुत के आयो ।। पीवण साप पी गयो कुंवर ने चैन न ताई । नहीं आशा विश्वास सोग हुगयो सताई ।। हाहाकार हुओ शहर में दाग देणे चली दुनि । रतनप्रभ सांवल रुदन दया देख बोले मुनि ।। मुनि वाथक सुणी वैन भ्रम राजन टांणों । कौन नाम गुरू कहे सांच देखावे ठीकाणो ।। नृपत वचन जो सुन कहे मुनि उत्तर इस धारो । उस खेजड़े प्रस्थान कुँवर ने लेइ पधारो ।। साधो सरणे आय नृपत विनती करावे । निश्चय हे त्रास हरो मुकट ऋषि चरण धारावे ।। माफ करो तकसीर अब आप चूक बक्साई । ये मौ वृद्ध काल की लाज है गुरु कुँवरजीवाइये । करुणासिन्धु दयाल नपत कँ हसी वर दियो । गयो रोस तत्काल मृतक सुत ततखीण जियो ।। धरियो खास दिसवास नैन खुलिया मुख वाचा । रोग सोग सब दूर शब्द सतगुरु का साचा ।। आलस मोड उहियों कहे निंद आइ भलो । किस काज मनें ख्याया अठे दूरस कहो साची गलो ।। खमा खमा सब कहे उठ गुरु चरणे लागा । मंगल धवल अपार बधावा आर्ण दवागा । तोरणछत्र निशाण कलस सौवन वधावा । भर मोतियन का थाल सखियन मिल मंगल गावे ।। ओछांडिया महल बजार घर रतनो चोक पुराविया । जदी खीन खाप पग पातिया रतनप्रभ पधराविया ।। नृपत करे विनती जोड़ कर हाजर ठाडो । कृपा करो महाराज धरममें रह सु गाडो ।। पटा परवाना गाम खजाना खास खुलाएं । कबहु न लोपु कार हुकम श्रवण सुन पाउ ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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