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हमैं पलट सीध्यांह तिकी सह पाप लगाणी दै वचन बीच सचियाय देब्रम भोजन मन भावीया ओयसां हूँत भिनमाल में महपत विप्र मनाविया ।।12।। दीध गुरां गोंहली दीद देवां ची सेवा दिये लाग व्याहरा पुत्र पुत्र परणेवा उत्तम दान आचार तार दाता रे तरणा इण विध सूई सवर किया सेवग पोकरणां उपलदे राव अवसर तणे साख अठारे सहत सख
ओयेसा थी उँटले बसे जाय भिनमाल बख ।। 1 3।। विरधमान जिण पछे बरस बावन पद लीधो सिरी रतन प्रभु सूर नाम सत गुर भो दीधो संवत इक उगणीस नगर ओयसां आये प्रतभोधे चामंड नाम साचलता पाये सहस चोरासी तीन लाक राजपुत्र परबोदीया इम भीनमाल पुर ओयसां ओसवाल थिर थप्पिया।।14।। भिन्नमाल थी उचल जाय ओयेसां बसाणां छत्री आ रै बंस उठे उसवाल कहाणां गयो राज धर गई प्थी पलटी पम्मारां उपल दे हुय असत सत साचल सु पियारां गुर हुवे रतन प्रभु अकल गमभड कै भूपत भूविनां पोकरणां सेबग तद हुबा ओसवाल तद अपनां ।।15।। प्रथम साख पम्मार सीक सीसोद सिंघाला रणथंभ रा गेड़वसू चहुआण बडाला सोलंकी सांखला बरल पडियारं बोराण दस्या भाटी सोट मोयला गोयल मकवाणा कछवाह गोरम कडबड किता लहता पटा जु लाखरा हेक दिन इता मीलन हुआ सूर बड़ा भड़ साखरा ।।16।।
(3) अथ उसवालां री उतपत रा कवित्त श्रावण पष्प (पख) सितात संवत एकै उगणीसै अरकवार आविम्म उस वंस लओ उदेसै प्रतिबोधियो परमार उपल जैन धर्म में आयो प्रथम गौत सौ पांच बावन जिणेसर बंधायो मणत्रि जनोई असग मिले उतारीयां भोजन जिमामें थिपे भोजगां करथित आरंभकारीयां ।।1।। घरि घरि रिष फिर गयो पवित्र आहार न पायो
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