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215 तासे आठ दस बरस नगर उसीया आए प्रतिबोधे चामुंड नाम तिहां साच्चुल पाए चार लाख चौरासी सहस राजकुली प्रतिबोधिया श्री रतन प्रभु सूरि उस्या नगर उसवाल थिरथपिया सावण पख सितात संवत बीयै बावीसे अर्क वार आठम्म उस वंस छवो उपदे से प्रतिबोध पमार उपल जिन ध्रम ह आए प्रथम गोत पाँच सै बावल भय बोत बंधाए मण नव जनो उ ब्राह्मणां असंक मेली उतारीया
भोजन जिमाइ थाका भोजग करिथिति आरम्भ का किया ॥2॥ 4. केशरिया नाथ मंदिर ग्रंथागार के गुटके
इस ग्रंथागार में दो गुटके उपलब्ध हैं (1) गुटका नं. 4, ‘कवित्त उसवालां री उत्पत्ति रो' (2) गुटका नं. 29
प्रथम गुटका अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस पर संवत् 1801 अंकित है। यह सम्भवत: प्राचीनतम गुटका है। इसमें उपल देशल सुत है। उहड़-उपल दोनों श्रीमालनगर से मण्डोर आए, ओसिया बसाया और रत्नप्रभसूरि ने 24 वि.सं. में प्रतिबोधित कर ओसवाल वंश की स्थापना की। द्वितीय गुटके में भी कथानक समान है। गुटका संख्या 4 के दो छन्द उद्धृत है। ये दोनों छन्द राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, बीकानेर के क्रमांक 655 के गुटके के छन्दों के समान है। यहाँ भी संवत् ‘वीये वाइये' ही कहा है।
वर्द्धमाण जिण थकी पीढ़ी बारमी पद लीधो श्री रतन प्रभ सुर नाम तेस गुरु दीधो ते सुं अठ दस बरस नगर ओईसा आए प्रतीबोधी चामुंड नाम तै साचल पाए चार लाख चौरासी सहस थिर राजपुत्र प्रतिबोधिया श्री रतन प्रभ सूर ओईसा नगर ओसवाल थिरथपीया।।8।। सावण पख सितात सम्वत् वीयै बाई से अरक वार आठम ओइस वंश हुयो उपदेस प्रतिबोध्या पमार ओपल जिन धर्म में आयो प्रथम गोत सो पांच बाबल सहित बँधायो मण नव जिनोई ब्राह्मण असंख नरे उतारीया भोजन जीमावन भोजगां कीया थित आरिमकारीया।।9।।
1. इतिहास की अमरबेल-ओसवाल, प्रथम खण्ड, पृ91-92
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