________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
186 ..
4. कृष्ण, ब्रह्मा और शंकर से जो देवाधिदेव अर्थात् श्री वर्धमान स्वामी स्तुत्य किया। यह शब्द ओभि: से बना है। यहां अर्थ है कृण्णाधि से स्तुत्य देवाधिदेव का घर।
5. ओकेश में अ: का अभिप्राय अर्हत और सिद्ध है। यहाँ अभिप्राय है, महावीर स्वामी का ओक- गृह। तत्पुरुष समास परक अर्थ हुआ महावीर स्वामी का चैत्य । बाद में इसका अर्थ हुआ उसवर्धमान स्वामी के चैत्य से है ईश- ऐश्वर्य जिसका। ओकेशगण महावीर स्वामी के सान्निध्य से ही वृद्धि को प्राप्त हुआ।
इसके अतिरिक्त भी अनेक अर्थ सम्भव है। 1. श्री केशरीकुमारऽनगार जिस गुरुगण में है, उस गण का नाम भी उपकेश हुआ।' 2. जहाँ केश छोड़े जाते हैं, मुण्डन संस्कार होता है।'
3.क: ब्रह्मा, अ: कृष्ण, अ:शंकर। इनका द्वन्द्व करने पर का बना। जिसने छोड़ दिया ब्रह्मा, कृष्ण और शंभु से केश याने पारतीर्थक धर्म और जो तीर्थकारों ने कहा।
4. कः सुख, ई- लक्ष्मी, ये दोनों जिस धर्म में या जिस धर्म में तद्धर्मी मनुष्यों के स्वाधीन है, उस धर्म का नाम हुआ केश अर्थात् स्वाधीन सुख सम्पत्ति वाला धर्म और वह धर्म (जैन धर्म) जिस गच्छ से उप= समीप में हो या जिससे अधिक प्राप्त हो, उस गच्छ का नाम भी उपकेशगच्छ है।
5. केश का अर्थ है क, अ और ई, जिसका अर्थ है ब्रह्मा, विष्णु और महेश । तथा
1. भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास, प्रथम जिल्द, पृ133
मूल अ: कृष्ण, आ ब्रह्मा, उशंकर, एषे द्वन्द्वे आवस्तत:
ओमि: कृष्ण: ब्रह्मा शंकर देवै: कायते देवाधिदेवत्वादिति ओक:
प्रस्तावत् श्री वर्धमान स्वामी। 2. वही, पृ133
अ: अर्हन “अ: स्यादर्हति सिद्धे च" प्रस्तावादिह अ इति शब्देन श्री वर्द्धमान स्वामी प्रोच्यते। तत: अस्य ओका गृहं चैत्यमिति यावत। ओक: श्री वर्द्धमान स्वामी चैत्य मित्यर्थः । तस्मादीश: ऐश्वर्य यस्य ओकेश: । यतोऽप गण: श्रीमहावीरतीर्थंकर सान्निध्यत: स्फाति
मवापोति पंचमोऽर्थ। 3. वही, पृ 133
उप समीपे केशा: शिरोरुहा: सन्त्यस्येति उपकेश: श्री पापित्यीय केशीकुमाराऽगारः। 4. वही, पृ 134
उपवर्णि तात्स्यक्ता: केशा: स उपकेश: 'ओसिका नगरी' तरचां हि सत्यका देव्याश्चैत्यमस्ति। 5. वही, पृ 134
को ब्रह्मा, अ: कृष्णः, अ: शंकर: ततो द्वन्द्वे काः। तैरीष्टेऐश्वर्य मनुभवति यः स: केश: । कानां ईश: ऐश्वर्यरमाद्वा केश: पारतीर्थिक धर्म: स: उपवर्जित्स्यक्तो यस्मात्स उपकेश कृदुक्त विशुद्ध
धर्म: स: विद्यते यस्मिनगच्छे स उपकेश: 6. वही, पृ 135
कं च सुख ई च लक्ष्मी: कयौ ते ईशे स्वायत्ते यत्र यस्माद्वा स: केश: अर्थात् जैनोधर्मः । सः उपसमीपे अधिको वाऽस्माद्गच्छात् स उपकेश इति चतुर्थोर्य।
For Private and Personal Use Only