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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 183 जिनकुशलसूरि - श्री जिनकुशलसूरि जी (वि.सं 1330-1389) ने बावेला, संघवी, जड़िया और डागा आदि गोंत्रों की स्थापना की। वि.सं 1371 में बावेला ग्राम में चौहान रणधीर को प्रतिबोधित कर बावेला गोत्र की, वि.सं 1381 में नाडौल में चौहान डूंगाजी को प्रतिबोधित कर डागा गोत्र की स्थापना की। जिनभद्रसूरि - श्री जिनभद्रसूरि ने वि.सं 1475 में झाबुआ में राठौड़ झंवरे को प्रतिबोधित कर भावक गोत्र की स्थापना की और श्री मांगीलाल भूतेड़िया के अनुसार वि.सं 1478 में इन्होंने भण्डारी गोत्र की स्थापना की। जिनहंससूरि - श्री जिनहससूरि ने वि.सं 1552 में खजवाणा में खींची गिरधारी को प्रतिबोधित कर गेलड़ा (गेहलड़ा) गोत्र की स्थापना की। गिरधारी जी के पुत्र का नाम गेलाजी था, इसलिये इस गोत्र का नाम गेलड़ा पड़ा। रविप्रभसूरि - रूद्रपल्ली खरतरगच्छाचार्य श्री रविप्रभसूरिजी ने देवड़ाचौहान लाखन को बड़नगर में वि.सं 1172 में प्रतिबोधित कर लोढा गोत्र की स्थापना की। लोंदे जैसा पुत्र होने के कारण यह लोढा कहलाए। मानदेवसूरि - खरतरगच्छ मानदेवसूरि ने महानगर में पंवार राजपूत आसधीर को प्रतिबोधित कर नाहर गोत्र की स्थापना की। आसधीर को खोया पुत्र नाहर के पास मिला, इसलिये गोत्र का नाम नाहर रखा। जयप्रभसूरि - इसी गच्छ के जयप्रभसूरि ने छजलानी और घोड़ावत गोत्रों की स्थापना की। संडेरगच्छ-यशोभद्रसूरि खरतरगच्छ के अतिरिक्त अन्यगच्छ के आचार्यों में संडेरगच्छ के यशोभद्रसूरि ने 11वीं शताब्दी में नाडोल में दाराब को प्रतिबोधित कर भण्डारी गोत्र की स्थापना की। दाराब खजाने का भण्डागारिक था, इसलिये यह गोत्र भण्डारी कहलाया। गुहणोतों की ख्यात के अनुसार खेड़ में तपागच्छ के यति श्री शिवसेन से प्रतिबोधित मोहन को प्रतिबोधित कर मोहनोत (मुहणौत, मुणोत) गोत्र की स्थापना की। श्री गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार मुहणोत गोत्र वाले अपनी वंश परम्परा राठौड़ रावसिंह जी से मिलाते हैं। सीहाजी का पुत्र आसपाल था, उसका पुत्र धुहड, तत्पुत्र रायपाल हुआ और रायपाल का दूसरा पुत्र मोहन था। इसी की बीसवीं पीढ़ी में प्रसिद्ध इतिहासकार नैणसी हुए। कोरटगच्छाचार्य-रत्नप्रभसूरि कोरंटगच्छाचार्य रत्नप्रभसूरि ने संखवाल ने चौहान लखमसी को वि.सं 1175 में प्रतिबोधित कर संखवाल गोत्र की स्थापना की। बाप्पभट्टसूरि - श्री मीजीलाल भूतेड़िया के अनुसार आचार्य बाणभट्टसूरि (वि.सं 1. श्री मांगीलाल भूतेड़िया, इतिहास की अमरबेल, ओसवाल, प्रथम, पृ 168 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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