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एक प्रमाणिक ग्रंथ ओसवाल वंश पर पूर्व में कुछ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, किन्तु जैनमत और ओसवंश के प्रेरणा के संबंधों को उजागर करने वाली यह प्रथम पुस्तक है। प्रागैतिहासिक काल के प्रमाणों से पुष्ट कर लेखक ने ओसवाल जाति को आर्यजाति स्वीकार किया है तथा जैनाचार्यों को ओसवंश का प्रेरणा स्रोत कहा है। भगवान ऋषभ के युग से महावीर के युग तक का विश्लेषण करते हुए जैन धर्म के विकास की कहानी को वर्तमान युग तक धाराप्रवाह रूप में प्रेषित करने का परिश्रम पाठक के लिए उपयोगी रहा है। ओसिया (मारवाड़) स्थान को साधारणतः ओसवाल वंश की उत्पत्ति के साथ जोड़ा जाता है, मगर कोई भी परम्परा एक दिन में प्रारम्भ नहीं होती। ओसिया के शिलालेख ओसवंश की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हैं। लेखक ने पट्टावलियों, गुटकों, विभिन्न ग्रन्थागारों के साहित्य का उपयोग करते हुये पुस्तक को प्रामाणिक स्तर प्रदान किया है। वर्तमान में ओसवाल जाति, जैनधर्म के पूरक के रूप में स्वीकार की जाती है, यद्यपि जाति और धर्म के कार्य-कलापों में बहुत अन्तर होता है। फिरभी ओसवाल समाज की व्यवस्था में जैनधर्म प्रतिबिम्बित होता है । जर्मन विद्वान व्यूहलर दक्षिण भारत की यात्रा के समय एक जैन परिवार के यहाँ ठहरा था और उनकी जीवन शैली को देखकर जैन धर्म की ओर आकर्षित हुआ था। उसके परिणामस्वरूप हर्मन जेकोबी ने गहरा अध्ययन कर प्रमाणित किया था कि जैन धर्म बौद्ध धर्म से भिन्न है। लेखक ने गहरे अध्ययन और परिश्रम से पुस्तक को विस्तार दिया है, वह स्तुत्य है। आशा है यह पुस्तक ओसवाल और जैनमत के लोगों के लिए ही उपयोगी नहीं होगी, अपितु साधारण पाठक को भी प्रेरित करेगी। लेखक ने अनेक पुस्तकें विभिन्न विषयों पर लिखी हैं, लेकिन यह पुस्तक अपनी ही जाति और धर्म को समर्पित कर लेखक ने समाज से ऋणमुक्त होने का प्रयास किया है। साधुवाद.
महावीर गेल
महावीर राय गेलड़ा
निदेशक (से.नि.) महाविद्यालय शिक्षा, राजस्थान सरकार,
जयपुर
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