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179 उत्पत्ति जिनेश्वरसूरि के गुरु वर्द्धमान सूरि द्वारा हुई।
जिनेश्वरसूरि के प्रतिबोध से लोद्रवा (जैसलमेर) के भाटी नरेश को प्रतिबोधित कर भणसाली (भंसाली, भनसाली) गोत्र की प्रस्थापना की। जोधपुर के मुनिसुव्रत स्वामी के मंदिर के तलघर में इस गोत्र की उत्पत्ति का पता चलता है। श्री पूर्णचंद नाहर ने 'जैन लेखसंग्रह' भाग 3 में एक पत्र (बीकानेर के उपाध्याय पं जयचंद्र गणी से प्राप्त) के अनुसार लोद्रवा के सागर राजा के दो पुत्र श्रीधर और राजधर जिनेश्वरसूरि से प्रतिबोध पाकर जैन हुए और भणसाली कहलाए।
जिनेश्वरसूरि ने 1101 वि.सं में सोलंकी राजपूत गोविन्द को नाणा ग्राम में प्रतिबोधित कर श्रीपति गोत्र की संस्थापना की।
अभयदेव सूरि - 1072-1135 वि.सं ने खेलसी पगरिया और मेड़तवाल गोत्रों की स्थापना की। ब्राह्मणगोत्रीय शंकरदास को संवत् 1111 में प्रतिबोधित कर पगारिया गोत्र की स्थापना की। इनके वंशजों की पगारिया, मेड़तवाल और खेतसी की तीन शाखाएं चली। गोलिया इसी पगरिया गोत्र की शाखा है।
हेमचंद्रसूरि - हेमचंद्रसूरि ने सांखला, सुराणा, सियाल, सांड, सालेचा और पुनमिया गोत्रों की स्थापना की। इन्होंने सिद्धपुर में मूरजी को प्रतिबोधित कर सुराणा गोत्र की स्थापना की। सूरजी के भाइयों में संखजी से सांखला गोत्र, सावल जी से सियाल गोत्र सांवलजी के पुत्र सुखा में सुखाणी और पूनम से पुनमिया गोत्र स्थापित हुए। सांवल जी के पुत्र ने सांड को पछाड़ा, इससे सांड गोत्र स्थापित हुआ।
जिनवल्लभसूरि-जिनवल्लभसूरि वि.सं 1156-1177 ने चोपड़ा, गुणधर, बडेर, कुकड़, सांड, बौठिया, ललवाणी, बरमेचा, हरखावत, मल्लावत, साह, सोलंकी, कांकरिया, और सिंघी आदि गोत्रों की स्थापना की। इन्होंने संवत् 1142 में क्षत्रिय भीमसिंह को कांकरोल में प्रतिबोध देकर कांकरिया गोत्र की स्थापना की। वि.सं 1156 में मण्डोर के परिहार शासन नाहरदेव को प्रतिबोधित कर कुकड़ गोत्र (पुत्र का नाम कुक्कड़ देव था) की स्थापना नवनीत चोपड़ने से हुआ, इसलिये कुकड़ चोपड़ा कहलाया। कायस्थ मंत्री गुणधर ने राजपूत के नवनीत चुपड़ा था इसलिये यह गोत्र गुणधर चोपड़ा कहलाया। गुणधर चोपड़ा के वंश में गांधी का व्यवसाय करने से गांधी हुए। ग्यारहवीं शताब्दी में ही वीसलपुर में चौहान राजपूत दूगड़ सूगड़ को प्रतिबोधित करने से दूगड़ सूगड़ गोत्र की स्थापना हुई। 1177 वि.सं में पंवार क्षत्रिया पृथ्वीपाल धार नगरी में बहुफण शत्रुजय का मंत्र प्राप्त करने से बहुफणा गोत्र की स्थापना की वि.सं 1167 में रणथम्भौर के परमार क्षत्रिय लालसिंह को प्रतिबोध देकर सब को जैन बनाया। बड़े पुत्र बयोद्धार से बंठ गोत्र, छोटे पुत्र लालणी से ललवाणी गोत्र, पुत्र उदयसिंह के वंश शाह उपाधि से शाह हुए और मल्ले पुत्र से मल्लावत हुए। पंवार लालसिंह के पुत्र ब्रह्मदेव के नाम से ब्रह्मेचा (बरमेचा) गोत्र की स्थापना हुई। श्री कोठारी के अनुसार यह विश्वसनीय है कि बांठिया गोत्र की स्थापना जिनवल्लभसूरि ने की। इसी वंश में 1644 में हरखाजी से हरखावल
1. सोहनलाल कोठारी, ओसवाल वंश, अनुसंधान के आलोक में, पृ208
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